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________________ 'आस्यम् अस्यते:, आस्यन्दते एतदन्नमितिवा'७४ यास्कके इन दो निर्वचनोंमें प्रथम निर्वचनके अनुसार इसमें अस् क्षेपणे धातु का योग तथा द्वितीय निर्वचन में आ स्यन्द प्रसवणे धातु का योग है।अस्-आस्यम्। आङ् + स्यन्द् = आस्यम्। यास्कका प्रथम निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार पर उपयुक्त है। द्वितीय निर्वचनमें अर्थात्मकता संगत है। महर्षि पंतजलि भी आस्यम्में अस् क्षेपणे धातुका योग मानते हैं। इनके अनुसार इसमें वर्णोका प्रक्षेपण होता है या उसमें अन्न गीला होता है।७५ व्याकरणके अनुसार अस्क्षेपणे धातुसे ण्यत्७६ प्रत्यय करने पर आस्यम् शब्द बनता है (अस्यन्ते वर्णा: येन) अथवा अस्यते अस्मिन् ग्रासोवा) पुन: आ+ स्यन्द् प्रस्रवणे से ड:७७ प्रत्यय करने पर भी आस्यम् शब्द बन सकता है। (आस्यन्दते अम्लादिना प्रस्रवति, अन्नादिना द्रवीक्रियते वा) , (२६) दनम् :- दन का अर्थ पर्यन्त (मात्र) होता है। इस शब्दको स्पष्ट करनेके लिए आस्यदन तथा उपकक्षदनि शब्द ध्यातव्य है। क्रमश: इनका अर्थ होता है मुख तक पानी वाला (हृद) एवं कमर तक पानी वाला (हृद)। दध्न शब्दके निर्वचनमें यास्क स्रवत्यर्थक दध् धातुका योग मानते हैं- 'दलं दध्यतेः सवतिकर्मण:'७९ द्वितीय निर्वचन प्रस्तुत करते हुए वे इसमें दसु उपक्षये धातुका योग मानते हैं-दस्य'तेर्वास्याद्वितस्ततरं भवति'७९ दसु उपक्षये धातुसे मानने के कारण में वे कहते हैं कि वह क्रमशः दस्ततर न्यूनतर होता जाता है। यास्कका प्रथम निर्वचन ध्वन्यात्मक दृष्टिकोणसे उपयुक्त है। द्वितीय निर्वचन अर्थात्मक महत्व रखता है। व्याकरण के अनुसार इसे दध् धातुसे नः प्रत्यय कर बनाया जा सकता है। पाणिनिने दन को शब्द नहीं मानकर दनच प्रत्यय माना है। प्रत्ययोंके सम्बन्धमें कहा जाता है कि प्राचीन कालमें वे प्रत्यय स्वतंत्र प्रकृतिके रूपमें थे बादमें घिसते-घिसते प्रत्ययके रूपमें रह गये इससे स्पष्ट है कि यास्कके समयमें दघ्न प्रकृति के रूपमें प्रयुक्त होता था। (२७) हद :- इसका अर्थ तालाब होता है। यास्क इसके लिए दो निर्वचन प्रस्तुत करते हैं- 'ह्रदो हादतेः शब्द कर्मण: हलादतेर्वा स्यात् शीतीभाव कर्मण:'८२ प्रथम निर्वचनमें ह्राद् शब्दे धातुका योग है। ह्रदसे शब्द होता रहता है। द्वितीय निर्वचनमें शीतीमाव अर्थवाले हलाद् धातु है। वह जलके कारण शीतल बना रहता है। यास्कके इन दोनों निर्वचनोंका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। व्याकरणके अनुसार हाद् अव्यक्ते शब्दे से अच् प्रत्यय कर (ह्राद्+अच् = ह्रदः) बनाया जा सकता है। १३१ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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