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________________ विषीव्यति देशाविति ५० इस शब्दमें षिञ् बन्धने धातुका योग है। यह दो स्थानोंको जोड़ने वाली होती है। यह निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिसे उपयुक्त है। अत: भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे इसे संगत माना जाएगा। आज भी सीमाका अर्थ सरहद ही है। व्याकरणके अनुसार इसे षिञ् बन्धने धातुसे निपातन के५१ द्वारा या अप्५२ प्रत्यय कर सिद्ध किया जा सकता है। (१९) गायत्री :- गायत्री वैदिक छन्दका नाम है। मंत्र विशेष भी गायत्रीके नामसे अभिहित होता है। निरुक्तके अनुसार यह स्तुति कर्ममें प्रयुक्त मंत्र विशेष है. 'गायत्रं गायतेः स्तुति कर्मण: ५० गायत्र शब्दमें स्तुत्यर्थक गै धातुका योग है। यास्क गायत्रीके स्वरूपको आधार मानकर कहते हैं कि इसमें तीन चरण होते हैं५३ 'त्रिगमना वा विपरीता ५४। गायत्री शब्द त्रिगमना- (त्रीणि गमनानिः यस्या सा) के कारण प्रसिद्ध हुआ। अथवा त्रि एवं गम् को विपरीत कर देने पर गम् + त्रि = गायत्री बना। प्रथम निर्वचन में गै धातु तथा द्वितीय एवं तृतीय में गम् धातु प्राप्त होते हैं। प्रथम निर्वचन का ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है द्वितीय एवं तृतीय निर्वचनोंमें गम् धातु मानने पर ध्वन्यात्मक औदासिन्य स्पष्ट होता है। अन्तिम दोनों निर्वचनोंका अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। यास्क ब्राह्मण ग्रन्थके निर्वचनको प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि वह गाते हुए ब्रह्माके मुखसे गिर पड़ी- गायतो मुखादुदपतत् इति च ब्राह्मणम्।'५५ इस निर्वचनमें ऐतिहासिक महत्व सुरक्षित है। व्याकरण के अनुसार इसे गा+ त्रैङ् + क:५६ प्रत्यय कर बनाया जा सकता है। (२०) शक्वरी :- शक्वरी ऋचाको कहते है - 'शक्वर्यः ऋचः, शक्नोते:५७ यह शब्द शक् धातुसे निष्पन्न होता है। अर्थ संगतिकरणमें यास्क ब्राह्मण वाक्यको उद्धृत करते हैं- तद् यद् आभिः वृत्रम् अशकद् हन्तुम् तत् शक्वरीणां शक्वरीत्वम् ५७ अर्थात् जिन ऋचाओंसे वृत्र मारा जा सका , यही शक्वरियोंका शक्चरित्व है। अर्थात् इसी कार्य विशेषके चलते उसे शक्वरी कहा गया। उपर्युक्त निर्वचनमें शक शक्तौ धातुका योग है। फलतः ध्वन्यात्मक दृष्टिकोण से यह उपयुक्त है। इस निर्वचनका अर्थात्मक आधार ऐतिहासिक है। व्याकरणके अनुसार इसे शक् शक्तौ + वनिप्प८ प्रत्यय कर बनाया जा सकता है। (२१) ब्रह्मा :- यज्ञ सम्पादनार्थ ब्रह्मानामका एक ऋत्विकहोता है,जो यज्ञकी सभीक्रियाओं एवं मंत्रोंका निरीक्षण करता है।वह चारों वेदोंका ज्ञाताहोता है।वह यज्ञमें १२८ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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