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________________ जगती५ को प्रजापतिने हर्षक्षीण होते हुए बनाया, कहा गया है जो शब्दके अर्थानुसंधानमें ऐतिहासिक महत्व रखता है। नवम अध्यायमें वितस्ताके सम्बन्धमें कहा गया है कि वैदेहक नामकी अग्निने सबोंको जला दिया, केवल वितस्ता ही नहीं जली। फलतः इसका नाम अविदग्धा पड़ गया। यह अविदग्धा ही कालान्तरमें वितस्ताके नामसे विख्यात हो गयी। पुनः विपाशाके सम्बन्धमें कहा गया है कि विपाट नदीमें वशिष्ट ऋषि जब पाशोंसे जकड़ कर डूब रहे थे तो इसने उनके पाश खोल डाले थे इसी विपाशनके चलते उसका नाम विपाशा हो गया।१६ वितस्ता एवं विपाशाके इन निर्वचनोंके पीछे निश्चित ही ऐतिहासिक आधार है। दशम अध्यायमें रुद्र शब्दके सम्बन्धमें यास्क ऐतिहासिक आधारको उपस्थापित करते हैं। रूद्रने प्रजापति ब्रह्माको वाणसे बींध दिया, बादमें वह उसका शोक करता हआ रो पड़ा। फलतः रूद्र नाम सार्थक हआ। रूद्र शब्द में रूद रोदने धातु का योग एतदर्थ भी सार्थक है। रुद्रके सम्बन्धमें उपर्युक्त इतिहास कठशाखासे उद्धृत किया गया है। मैत्रायणी शाखासे भी इसका समर्थन प्राप्त होता है।१८ एकादश अध्यायमें सरमाशब्दका निर्वचन प्राप्त होता है। निरुक्तकार सरमाको माध्यमिक वाणी मानते हैं तथा ऐतिहासिक लोग इसका अर्थ देवशुनी करते हैं।९ सृ गतौ के कारण सरमा शब्द बना। देवशुनी सरमाने पणियोंके द्वारा पर्वतकी गुफाओंमें छिपाकर रखी गयी वृहस्पतिकी गायोंको वहां जाकर पता लगाया। फलतः सरमा शब्दमें यह ऐतिहासिक आधार स्पष्ट होता है। देवों एवं ऋषियों ने चतुर्दशी से मिले हुए पूर्णमासी के पूर्वमागको अनुमति कहा है। देवों एवं ऋषियोंकी इस अनुमतिके कारण ही इसका नाम अनुमति पड़ा। इसकी ऐतिहासिकता स्पष्ट है। उपर्युक्त विवेचनसे स्पष्ट है कि यास्कने कुछ शब्दोंके निर्वचनमें ऐतिहासिक आधारको अपनाया है। निरुक्तमें निर्वचनके प्रसंगमें भौगोलिक एवं व्यावहारिक आधारको भी अपनाया गया है। इसके अतिरिक्त भी कुछ अन्य आधार अपनाये गये हैं। कम्बोजा, शव, दात्र,नाकः, नमः,रूपाणि आदि शब्दोंमें भौगोलिक एवं व्यावहारिक आधार हैं। श्मशान,“ अंगुलि:ग,आदि शब्द सांस्कृतिक एवं व्यावहारिक आधार पर आधारित हैं।शकुनि शब्दमेंमी सांस्कृतिक आधार है।वृहस्पति,ब्रह्मणस्पति,हिरण्यगर्म,विश्वकर्मा,३१ हिरण्यस्तूप,प्रजापति आदिशब्दा में सामासिक आधार प्रधान है।कलि शब्द में ११९ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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