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________________ नि. ५/१, १३. नि. ८२, १४. नि. ८२, १५. नि. १११, १६. नि. १२।१, १७. नि. १२।३. (घ) शब्दानुकरण एवं यास्कके निर्वचन निर्वचनके विभिन्न आधारोंमें शब्दानुकरण भी एक प्रमुख आधार है। शब्दानुकरणको निरुक्तमें शब्दानुकृति कहा गया है। अनुकरण एवं अनुकृतिमें कोई अर्थगत विशेष पार्थक्य नहीं है। दोनों ही पदोंमें अनु + कृ का योग है। शब्दानुकृतिका अर्थ होता है शब्दका अनुकरण। हम देखते हैं कि लोक प्रयुक्त कुछ शब्द उसकी वाणीके आधार पर ही आधारित हैं। उदाहरण स्वरूप काक शब्दको लिया जा सकता है। काक एक पक्षी विशेष है जिसकी ध्वनि का, का होती है। इसी का, का ध्वनि विशेषके अनुसार इसका नाम काक पड़ गया। वृहदेवतामें आचार्य शौनक भी किसी वस्तुके नाम पड़नेके कारणोंमें उसकी वाणीको भी एक आधार मानते हैं। यास्कने शब्दानुकृतिके आधार पर कुछ निर्वचनोंको प्रस्तुत किया है। इससे स्पष्ट होता है कि यास्क निर्वचनके आधारोंमें शब्दानुकृतिको भी एक आधार स्वीकार करते हैं! निरुक्तके तृतीय अध्यायमें यास्क कहते हैं- काक इति शब्दानुकृति:, तदिदं शकुनिषु बहुलम्।” अर्थात् काक शब्द शब्दानुकृतिका परिणाम है तथा पक्षियोंमें इस तरह की बात अधिक देखी जाती है। दुर्गाचार्यने भी इसे ही स्पष्ट किया है । ३ आचार्य औपमन्यव पक्षियोंके नाममें शब्दानुकृतिको स्वीकार नहीं करते हैं। इनके अनुसार पक्षियों के नाममें शब्दानुकृति आधार न होकर अन्य आधार हैं। उदाहरण स्वरूप-काकको काक इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह अपकालयितव्य अर्थात् निकालने योग्य होता है। यहां निकालना अर्थ वाला काल् धातुसे काक शब्द माना गया। यद्यपि यह निर्वचन ध्वन्यात्मक दृष्टिसे अपूर्ण है। इसी प्रकार औपमन्यव तित्तिरिः शब्दमें तृ धातुकी कल्पना करते हैं क्योंकि वह उछल कर चलता है या उसमें तिलके समान चित्र होते हैं। यहां इन निर्वचनोंके आधार पर तित्तिरि शब्दमें क्रमश: गति एवं रूपको आधार माना गया है। कपिंजल एक मर्कट विशेष है जिसके निर्वचनमें औपमन्यव- कपिंजल : कपिरिव जीर्णः, कपिरिव जवते, ईषत्पिंगलो वा कमनीयं शब्दं पिंजयतीति वा मानते हैं। अर्थात्, कपिके समान वेगसे गमन करता हैकपि-जु गतौ +कपिंजलः,थोड़ा पीला वर्णका होता है इषत्- क +पिंगल := कपिंजल :, मधुर शब्दका उच्चारण करता है- क-पिंज् धातुसे कपिंजल शब्द माना गया है। अन्तिम निर्वचनमें पाठान्तर भी मिलता है। ११३ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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