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________________ ८।१, ३३. नि. ८।१, ३४. वाक्यात् प्रकरणादर्थादौचित्याद् देशकालतः । शब्दार्था: प्रविभज्यन्ते न रूपादेव केवलात् ॥ संयोगो विप्रयोगश्च साहश्चर्य विरोधिता । अर्थप्रकरणं लिंगं शब्दस्यान्यस्य सन्निधिः । भेदपक्षेऽपि सारूप्याद्भिन्नार्था : प्रतिपत्तिषु नियतायान्त्यभिव्यक्ति शब्दा: प्रकरणादिभि: ।। (वा. प. ३१४-१६), ३५. शक्तिग्रहं व्याकरणोपमान कोषाप्तवाक्यात् व्यवहारतश्च। वाक्यस्य शेषात् विवृतेर्वदन्ति सान्निध्यतः सिद्धपदश्च वृद्धाः ।। (सिद्धा. मु. शब्द खण्ड का. ८१ ( व्या प्र .), ३६. तद्येषु पदेषु स्वरसंस्कारौ समर्थौ प्रादेशिकेन गुणेन अन्वितौ स्याताम्, तथा तानि निर्ब्रूयात् । (नि. २1१), ३७. निघण्टु- १।१, ३९. नि. १/१, ४०. नि. १६,४१. नि. २1१, ४२. क्षीरं क्षरते ...नि. २२, ४३. महाभाग्यात् देवताया एक एव आत्मा बहुधा स्तूयते । नि. ७।१, ४४. नि. ३।३, ४५. नि. ३।३, ४६. नि. ३ ४ ४७. अथापि निष्पन्ने अभिव्याहारे अभिविचारयन्ति नि. २1१, ४८. नि. 919, ४९. नि. 219, ५०. अर्थावबोधे निरपेक्षतया पदजातं यत्रोक्तं तन्निरुक्तम् - (ऋ.भा.मू.)- सायण । (ग) दृश्यात्मक आधार और यास्कके निर्वचन समग्र साहित्य शब्द एवं अर्थके ऊपर आधारित है। निर्वचन शास्त्र भी मूल रूपमें शब्द एवं अर्थ पर ही आधारित है जिसमें शब्दोंके अर्थकी खोज प्राधान्येन विविक्षित होती है। अर्थ खोजकी दिशामें विभिन्न आधार अपनाए जाते हैं क्योंकि किसी भी शब्दमें अर्थ निहित होनेके कारण अवश्य होते हैं। किसी भी भाषाके शब्द देश कालकी स्थितियोंसे प्रभावित रहते हैं। इन स्थितियोंका परिदर्शन उस शब्दके अर्थानुसन्धानमें भी अपेक्षित होता है । कुछ शब्द ऐसे होते हैं जिनका आधार रूपात्मक या दृश्यात्मक होता है। किसी शब्दसे किसी खास रूपकी झलक मिलती है। यह दृश्यात्मक आधारके अंतर्गत भी माना जा सकता हैं। यास्क निर्वचनके प्रसंगमें यदा-कदा उल्लेख करते हैं कि इस शब्दमें दृश्यात्मक आधार है। पृथिवी शब्दके निर्वचनमें कहते हैं-अथ वै दर्शनेनपृथुः १ अर्थात् पृथिवी प्रस्तृत देखी जाती है। देखनेमें पृथिवी फैली लगती है इसलिए वह पृथिवी कहलायी। आचार्य शौनकने नाम पड़नेके आधारोंमें रूपको एक आधार माना है। वस्तुतः किसी पदार्थका नाम उसके रूपके आधार पर भी होता है। अगर कोई शब्द रूप पर आधारित है तो निश्चित ही उस शब्दके निर्वचनमें रूपात्मक आधारको अपनाया १११ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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