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________________ औ एवं आर् विकार परिगणित हैं। वैश्वानर शब्दमें (विश्व - वैश्व - वैश्वानर) वैश्व वृद्धिका परिणाम है । ६७ वृद्धिजन्य परिवर्तन के यास्क सम्मत उदाहरण अ-आ-अदितिः आदित्य: आदितेय : ६८, अ- आ भग भागानि‍ अ आ सवितृ सावित्राणि ७०, अ-आ अग्नि आग्नेय७१, इ. ऐ विद्युत् वैद्युत् ७ २, उ-औ उत्तम औत्तमिकानि७३, उ-औ पूषम् पौष्णाणि७४, उ-औ उशिजः पुत्रः औशिज: ७५, ऋ आर ऋष्टिषेणस्यपुत्रः आर्ष्टिषेण: ७६ X सम्प्रसारण- यण् का इक् वर्णोंमें परिवर्तन सम्प्रसारण कहलाता है७७ य व र ल का क्रमश: इ उ ऋ तथा लृ हो जाना सम्प्रसारण है। सम्प्रसारणकी प्रक्रियासे यास्क पूर्णपरिचित हैं। य र ल व को अर्ध स्वर माना गया है। यही कारण है इन वर्णोंका स्वरोंमें परिवर्तन देखा जाता है तथा ये सभी स्वरवत् कार्यसम्पादन करते हैं। यास्क सम्मत इसके उदाहरणोंको देखा जा सकता है " य इ यज् यजने इष्टम्, इष्ट्वा७८ व उ अव् रक्षणे ऊति‍, व उ क्वण् अव्यक्त शब्दे कुणरूि: ८०, व उ वश्- कान्तौ उशिज : ८१ र ॠ म्रद्-मर्दने मृद: ८२ र ऋ प्रथ् प्रख्यापने पृथुः ३ पृथक्८४ र ऋ प्रुष्-दाहे पृषत: ८५ " ध्वनिपरिवर्तनसे शब्दोंमें रूपात्मक परिवर्तन हो जाता है। रूपात्मक परिवर्तन के चलते अर्थात्मक परिवर्तन भी संभव है। व्याकरणमें ध्वनिपरिवर्तनके सिद्धान्त मान्य है। स्त्री प्रत्यय, तद्धित प्रत्यय आदिके विधानमें ध्वनिपरिवर्तन स्पष्ट हो जाते हैं। तद्धित आदि शब्दोंके निर्वचनमें यास्क भी ध्वनिविकार सम्बन्धी इन सिद्धान्तों को स्वीकार करते हैं, जैसा कि उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट है। यास्कके निर्वचनोंके ध्वन्यात्मक आधार-निर्वचन व्युत्पत्तिकी वह प्रक्रिया है जो शब्दोंके अर्थावबोधके लिए उसके उत्स का अन्वेषण करता है। शब्दोंमें एक अथवा एक से अधिक अर्थ विद्यमान रहते हैं। अर्थोंके चलते ही शब्द प्राणवान माना जाता है, अन्यथा उसे निरर्थक मानकर साहित्यसे वहिष्कृत कर दिया जाता। अनर्थक शब्दोंके प्रयोगसे साहित्य की श्रीवृद्धि नहीं हो सकती। ध्वनि शब्दकी लघु इकाई है। ध्वनियोंका समन्वित रूप शब्द हैं। शब्द किसी भी भाषाका आधार होता है। शब्दोंके बिना न तो अर्थकी कल्पनाकी जा सकती है और न ही साहित्यकी । ८६ संकेतादिकाअर्थबोध के कारण होतेहुए भी साहित्य में उसका शब्दोंसे ही प्रतिपादन संभव है। ध्वनिके बिना शब्दोंकी कल्पनाभी संभव नहीं । ध्वनि और शब्दमें १०१: व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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