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________________ 80 भद्रबाहुसंहिता बहुलता है । इन्हीं प्रक्षिप्त अंशों ने इस ग्रन्थ की मौलिकता को तिरोहित कर दिया है। अतः यह भद्रबाहु के वचनों के अनुसार उनके किसी शिष्य या प्रशिष्य अथवा परम्परा के किसी अन्य दिगम्बर विद्वान् द्वारा लिखा गया ग्रन्थ है । इसके आरम्भ के 2 5 अध्याय और विशेषत: 15 अध्याय पर्याप्त प्राचीन हैं। यह भी सम्भव है कि इनकी रचना वराहमिहिर के पहले भी हुई हो। भाषा की दृष्टि से यह ग्रन्थ अत्यन्त सरल है । व्याकरण सम्मत भाषा के प्रयोगों की अवहेलना की गई है। छन्दोभंग तो लगभग 300 श्लोकों में है। प्रत्येक अध्याय में कुछ पद्य ऐसे अवश्य हैं जिनमें छन्दोभंग दोष है । व्याकरण दोष लगभग 125 पद्यों में विद्यमान है। इन दोषों का प्रधान कारण यह है कि ज्योतिष और वैद्यक विषय के ग्रन्थों में प्राय: भाषा सम्बन्धी शिथिलता रह जाती है। वाराही संहिता जैसे श्रेष्ठ ग्रन्थ में व्याकरण और छन्द दोष हैं, पर भद्रबाहु संहिता की अपेक्षा कम। सम्पादन और अनुवाद इस ग्रन्थ का सम्पादन 'सिन्धी जैन ग्रन्थ माला' में मुद्रित प्रति तथा जैन सिद्धान्त भवन आरा की दो हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर हुआ है । एक प्रति पूज्य आचार्य महावीरकीति जी से भी प्राप्त हुई थी। मुद्रित प्रति में और जैन सिद्धान्त भवन की प्रतियों में बहुत अन्तर था। कई श्लोक भवन की प्रतियों में मुद्रित प्रति की अपेक्षा अधिक निकले । भवन की दोनों प्रतियां भी आपस में भिन्न थीं तथा आचार्य महावीरकीति जी की हस्तलिखित प्रति भवन की प्रतियों की अपेक्षा कुछ भिन्न तथा मुद्रित प्रति में उल्लिखित बम्बई की प्रति से बहुत कुछ अंशों में समान थी। प्रस्तुत संस्करण में भवन की ख/174 प्रति का पाठ ही रखा गया है। अवशेष प्रतियों के पाठान्तरों को पाद टिप्पणी में रखा गया है । प्रस्तुत प्रति में मुद्रित प्रति की अपेक्षा अनेक विशेषताएं हैं। कुछ पाठान्तर तो इतने अच्छे हैं, जिससे प्रकरणगत अर्थ स्पष्ट होता है और विषय का विवेचन भी स्पष्ट हो जाता है। हमने मु० के द्वारा मुद्रित प्रति के पाठ को सूचित किया है। मु० A से हमारा संकेत यह है कि आचार्य महावीरकीत्ति जी की प्रति में वह पाठ मिलता है। आचार्य महावीरकीत्ति की प्रति उनके हाथ से स्वयं कहीं से प्रतिलिपि की गयी थी और उसमें अनेक स्थलों पर बगल में पाठान्तर भी दिये गये थे । यह प्रति हमें 15 अध्याय तक मिली तथा इसके आगे एक दूसरे रजिस्टर में 30वां अध्याय और एक पृथक रजिस्टर में कुछ फुटकर शकुन और निमित्त सम्बन्धी श्लोक लिखे थे। फुटकर श्लोकों में अध्याय का संकेत नहीं किया गया था, अतः हमने उन श्लोकों को उस ग्रन्थ में स्थान नहीं दिया। 30वें अध्याय को परिशिष्ट के रूप में दिया गया है। उपयोगी विषय होने के कारण इस अध्याय को भी अनुवाद सहित दिया
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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