SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना 77 हैं । यह समस्त खण्ड नकल किया गया-सा मालूम होता है। दूसरे खण्ड को ज्योतिष और तीसरे को निमित्त कहा गया है। परन्तु इन दोनों अध्यायों के विषय आपस में इतने अधिक सम्बद्ध हैं कि उनका यह भेद उचित प्रतीत नहीं होता है। दूसरे खण्ड के 25 अध्याय, जिनमें उल्का, विद्युत्, गन्धर्वनगर आदि निमित्तों का वर्णन किया गया है, निश्चयतः प्राचीन हैं। छब्बीसवें अध्याय में स्वप्नों का निरूपण किया गया है। इस अध्याय के आरम्भ में मंगलाचरण भी किया गया है। नमस्कृत्य महावीरं सुरासुरजननतम् । स्वप्नाध्यायं प्रवक्ष्याभि शुभाशुभसमीरितम् ।। देव और दानवों के द्वारा नमस्कार किये गये भगवान् महावीर को नमस्कार कर शुभाशुभ से युक्त स्वप्नाध्याय का वर्णन करता हूँ। इससे ज्ञात होता है कि यह अध्याय पूर्व के 24 अध्यायों की रचना के बाद लिखा गया है और इसका रचनाकाल पूर्व अध्याय के रचनाकाल के बाद का होगा। मुख्तार साहब ने तृतीय खण्ड के श्लोकों की समता मुहूर्त चिन्तामणि, पाराशरी, नीलकण्ठी आदि ग्रन्थों से दिखलायी है और सिद्ध किया है कि इस खण्ड का विषय नया नहीं है, संग्रहकर्ता ने उक्त ग्रन्थों से श्लोक लेकर तथा उन श्लोकों में जहां-तहां शुद्ध या अशुद्ध रूप में परिवर्तन करके अव्यवस्थित रूप में संकलन किया है । अतः मुख्तार साहब ने इस ग्रन्थ का रचना काल 17वीं शताब्दी माना है। इस ग्रन्थ के रचना-काल के सम्बन्ध में मुनि जिनविजयजी ने सिन्धी जैन ग्रन्थ माला से प्रकाशित भद्रबाहुसंहिता के किञ्चित् प्रास्ताविक में लिखा है"ते विषे म्हारो अभिप्राय जरा जुदो छे हुँ एने पंदरमी सदीनी पछीनी रचना नथी समजतो ओछामा ओछी 12मी सदी जेटली जूनी तो ए कृति छेज, एवो म्हारो साधार अभिमत थाय छे, म्हारा अनुमाननो आधार ए प्रमाणे छे-पाटणना वाडी पाश्र्वनाथ भण्डार माथी जे प्रति म्हने मली छे ते जिनभद्र सूरिना समयमांएटले के वि० सं० 1475-85 ना अरसामा लखाएली छ, एम हुँ मार्नु छ कारण के ए प्रतिमा आकार-प्रकार, लखाण, पत्रांक आदि बधा संकेतो जिनभद्रसूरिए लखावेला सेंकडो ग्रन्थ तो तद्दन मलता अनेतेज स्वरूपता छ, जेम म्हें 'विज्ञप्ति त्रिवेणि, नी म्हारी प्रस्तावनामा जणाव्युं छे तेम जिनभद्र सूरिए खंमात, पाटण, जैसलमेर आदि स्थानोमा म्होटा अन्य-भण्डारो स्थापन कर्या हतां अने तेना, तेमणे नष्ट यतां जुनां एवां सेंकडो ताडपत्रीय पुस्तकोनी प्रतिलिपिओ कागल उपर उतरावी-उतरावी ने नूतन पुस्तकोनो संग्रह को हतो, ए भंडारमाथी मलेली
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy