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________________ 62 वृद्धि होती है । बाईसवें अध्याय में 21 श्लोक हैं । इस अध्याय में सूर्य की विशेष अवस्थाओं का फलादेश वर्णित है । सूर्य के प्रवास, उदय और चार का फलादेश बतलाया गया है । लाल वर्ण का सूर्य अस्त्र प्रकोप करनेवाला, पीत और लोहित वर्ण का सूर्य व्याधि- मृत्यु देनेवाला और धूम्र वर्ण का सूर्य भुखमरी तथा अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न करनेवाला होता है । सूर्य की उदयकालीन आकृति के अनुसार भारत के विभिन्न प्रदेशों के सुभिक्ष और दुर्भिक्ष का वर्णन किया गया है । स्वर्ण के समान सूर्य का रंग सुखदायी होता है तथा इस प्रकार के सूर्य के दर्शन करने से व्यक्ति को सुख और आनन्द प्राप्त होता है । तेईसवें अध्याय में 58 श्लोक हैं । इसमें चन्द्रमा के वर्ण, संस्थान, प्रमाण आदि का प्रतिपादन किया गया है। स्निग्ध, श्वेतवर्ण, विशालाकार और पवित्र चन्द्रमा शुभ समझा जाता है । चन्द्रमा का रंग - किनारा कुछ उत्तर की ओर उठा हुआ रहे तो दस्युओं का घात होता है । उत्तर शृंग वाला चन्द्रमा अश्मक, कलिंग, मालव, दक्षिण द्वीप आदि के लिए अशुभ तथा दक्षिण श्रृं गोन्नति वाला चन्द्र यवन देश, हिमाचल, पांचाल आदि देशों के लिए अशुभ होता है । चन्द्रमा की विभिन्न आकृति का फलादेश भी इस अध्याय में बतलाया गया है । चन्द्रमा की गति, मार्ग, आकृति, वर्ण, मण्डल, वीथि, चार, नक्षत्र आदि के अनुसार चन्द्रमा का विशेष फलादेश भी इस अध्याय में वर्णित है । भद्रबाहुसंहिता चौबीसवें अध्याय में 43 श्लोक हैं । इसमें ग्रहयुद्ध का वर्णन है । ग्रहयुद्ध के चार भेद हैं—भेद, उल्लेख, अंशुमर्दन और अपसव्य । ग्रहभेद में वर्षा का नाश, सुहृद और कुलीनों में भेद होता है । उल्लेख युद्ध में शस्त्रभय, मन्त्रि विरोध और दुर्भिक्ष होता है । अंशुमर्दन युद्ध में राष्ट्रों में संघर्ष, अन्नाभाव एवं अनेक प्रकार के कष्ट होते हैं । अपसव्य युद्ध में पूर्वीय राष्ट्रों में आन्तरिक संघर्ष होता है तथा राष्ट्रों में वैमनस्य भी बढ़ता है । इस अध्याय में ग्रहों के नक्षत्रों का कथन तथा ग्रहों के वर्णों के अनुसार उनके फलादेशों का निरूपण किया गया है । ग्रहों का आपस में टकराना धन-जन के लिए अशुभ सूचक होता है । पच्चीसवें अध्याय में 50 श्लोक हैं। इसमें ग्रह, नक्षत्रों के दर्शन द्वारा शुभा - शुभ फल का कथन किया गया है । इस अध्याय में ग्रहों के पदार्थों का निरूपण किया गया है । ग्रहों के वर्ण और आकृति के अनुसार पदार्थों के तेज, मन्द और समत्व का परिज्ञान किया गया है । यह अध्याय व्यापारियों के लिए अधिक उपयोगी है । छब्बीसवें अध्याय में स्वप्न का फलादेश बतलाया गया है । इस अध्याय में 86 श्लोक है। स्वप्न निमित्त का वर्णन विस्तार के साथ किया गया है। धनागम, विवाह, मंगल, कार्यसिद्धि, जय, पराजय, हानि, लाभ आदि विभिन्न फलादेशों
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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