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________________ प्रस्तावना 59 पीछे की ओर जाता दिखाई पड़े तो यह शकुन अत्युत्तम है । बाँझ स्त्री, चमड़ा, धान का भूसा, पुआल, सूखी लकड़ी, अंगार, हिजड़ा, विष्ठा के लिए पुरुष या स्त्री, तेल, पागल व्यक्ति, जटा वाला संन्यासी व्यक्ति, तृण, संन्यासी, तेल मालिश किये बिना स्नान के व्यक्ति, नाक या कान कटा व्यक्ति, रुधिर, रजस्वला स्त्री, गिरगिट, बिल्ली का लड़ना या रास्ता काटकर निकल जाना, कीचड़, कोयला, राख, दुर्भग व्यक्ति आदि शकुन यात्रा के आरम्भ में अशुभ समझे जाते हैं । इन शकुनों से यात्रा में नाना प्रकार के कष्ट होते हैं और कार्य भी सफल नहीं होता है । यात्रा के समय में दधि, मछली और जलपूर्ण कलश आना अत्यन्त शुभ माना गया है । इस अध्याय में यात्रा के विभिन्न शकुनों का विस्तारपूर्वक विचार किया गया है। यात्रा करने के पूर्व शुभ शकुन और मुहूर्त का विचार अवश्य करना चाहिए । शुभ समय का प्रभाव यात्रा पर अवश्य पड़ता है। अत: दिशाशूल का ध्यान कर शुभ समय में यात्रा करनी चाहिए। चौदहवें अध्याय में उत्पातों का वर्णन किया गया है। इस अध्याय में 182 श्लोक हैं । आरम्भ में बताया गया है कि प्रत्येक जनपद को शुभाशुभ की सूचना उत्पातों से मिलती है। प्रकृति के विपर्यय कार्य होने को उत्पात कहते हैं। यदि शीत ऋतु में गर्मी पड़े और ग्रीष्म ऋतु में कड़ाके की सर्दी पड़े तो उक्त घटना के नौ या दस महीने के उपरान्त महान् भय होता है। पशु, पक्षी और मनुष्यों का स्वभाव विपरीत आचरण दिखलाई पड़े अर्थात् पशुओं के पक्षी या मानव सन्तान हो और स्त्रियों के पशु-पक्षी सन्तान हो तो भय और विपत्ति की सूचना समझनी चाहिए। देव प्रतिमाओं द्वारा जिन उत्पातों की सूचना मिलती है वे दिव्य उत्पात, नक्षत्र, उल्का, निर्घात, पवन, विद्य त्पात, इन्द्रधनुष आदि के द्वारा जो उत्पात दिखलायी पड़ते हैं वे अन्तरिक्ष; पार्थिव विकारों द्वारा जो विशेषताएँ दिखलाई पड़ती हैं वे भौमोत्पात कहलाते हैं । तीर्थंकर प्रतिमा से पसीना निकलना, प्रतिमा का हँसना, रोना, अपने स्थान से हटकर दूसरी जगह पहुँच जाना, छत्रभंग होना, छत्र का स्वयमेव हिलना, चलना, कांपना आदि उत्पातों को अत्यधिक अशुभ समझना चाहिए। ये उत्पात व्यक्ति, समाज और राष्ट्र इन तीनों के लिए अशुभ हैं । इन उत्पातों से राष्ट्र में अनेक प्रकार के उपद्रव होते हैं । घरेलू संघर्ष भी इन उत्पातों के कारण होते हैं। इस अध्याय में दिव्य, अन्तरिक्ष और भौम तीनों प्रकार के उत्पातों का विस्तृत वर्णन किया गया है। पन्द्रहवें अध्याय में शुक्राचार्य का वर्णन है। इसमें 230 श्लोक हैं। इसमें शुक्र के गमन, उदय, अस्त, वक्री, मार्गी आदि के द्वारा भूत-भविष्यत् का फल, वृष्टि, अवृष्टि, भय, अग्निप्रकोप, जय, पराजय, रोग, धन, सम्पत्ति आदि फलों का विवेचन किया गया है। शुक्र के छहों मण्डलों में भ्रमण करने के फल का कथन किया है। शुक्र का नागवीथि, गजवीथि, ऐरावतवीथि, वृषवीथि, गोवीथि,
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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