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________________ परिशिष्टाऽध्यायः को एक सौ आठ बार मन्त्रित कर रोगी की आँखों पर रखे ।।169॥ तर्जन्यां स्थापयेदभमौ रविविम्बं सुवर्तुलम् । रोगी पश्यति चेद्विम्बमायु:षण्मासमध्यगम् ॥1700 उपर्युक्त क्रिया के अनन्तर रोगी को भूमि की ओर देखने को कहे । यदि रोगी भूमि पर सूर्य के गोलाकार बिम्ब का दर्शन करे तो छः महीने की आयु समझनी चाहिए ॥1700 इत्यंगुलिप्रश्ननिमित्तं शतवारं सुधीमन्त्र्यपावनम् । कांस्यभाजने तेन प्रक्षाल्य हस्तयुगलं रोगिण: पुन: ॥171॥ एकवर्णाज्जहिक्षीराष्टाधिकै: शतविन्दुभिः । प्रक्षाल्य दीयते लेपो गोमूत्रक्षीरयोः क्रमात् ॥172॥ प्रक्षालितकरयुगलश्चिन्तय दिनमासक्रमश: । पञ्चदशवाणहस्ते पञ्चदशतिथिश्च दक्षिणे पाणौ ॥173॥ इस प्रकार अंगुली प्रश्न का वर्णन किया। अब अलक्त और गोरोचन प्रश्नविधि का निरूपण करते हैं। विद्वान् व्यकिः 'ॐ ह्रीं अहं णमो अरिहन्ताणं ह्रीं अवतर अवतर स्वाहा' मन्त्र का जाप कर किसी काँसे के बर्तन में अलक्त-लाक्षा को भरकर मन्त्रित करे । अनन्तर रोगी के हाथ, पैर आदि अंगों को धोकर शुद्ध करे। पश्चात् गोमूत्र और सुगन्धित जल से रोगी के हाथों का प्रक्षालन करे । अनन्तर दिन, महीना और वर्ष का चिन्तन करे । पन्द्रह की संख्या की बाँयें हाथ में और पन्द्रह की संख्या की दाहिने हाथ में कल्पना करे।।171-173॥ शुक्लं पक्षं वामे दक्षिणहस्ते च चिन्तयेत् कृष्णम् । प्रतिपत्प्रमुखास्तिथय उभकरयोः पर्वरेखासु ॥174॥ बाँयें हाथ में शुक्लपक्ष की और दाहिने हाथ में कृष्णपक्ष की कल्पना करे। प्रतिपदादि तिथियों की दोनों हाथ की पर्वरेखाओं-गांठ स्थानों पर कल्पना करे।।174॥ एकद्वित्रिचतु:संख्यमरिष्टं तत्र चिन्तयेत् । ___ यदि उक्त क्रिया के अनन्तर पर्वरेखाओं में एक, दो, तीन और चार संख्या में कृष्णरेखाएँ दिखलायी पड़ें तो अरिष्ट समझना चाहिए। हस्तयुगलं तथोद्वयं प्रातः गोरोचनरस: 1175॥ अभिमन्त्रितशतवारं पश्येच्च करयुगलम्। करे करपर्वणि यावन्मात्राश्च विन्दवः कृष्णा: ।1761
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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