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________________ परिशिष्टाऽध्यायः 485 का दर्शन करें। इस प्रकार स्वप्न का देखना ही मंत्रज कहलाता है । “ॐ ह्रीं लाः ह्वः प: लक्ष्मी झवीं कुरु कुरु स्वाहा” इस मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए ।।147॥ सर्वांगेषु यदा तस्य लीयते मक्षिकागणः। षण्मासं जीवितं तस्य कथितं ज्ञानदृष्टिभिः ॥148॥ जिस व्यक्ति के समस्त शरीर पर अकारण ही अधिक मक्खियाँ लगती हों उसकी आयु ज्ञानियों ने छह महीने बतलायी है । यहाँ से प्रत्यक्ष अरिष्टों का वर्णन आचार्य करते हैं ।। 1481 दिग्भागं हरितं पश्येत् पीतरूपेण शुभ्रकम् । गन्धं किञ्चिन्न यो वेत्ति मृत्युस्तस्य विनिश्चितम् ॥149॥ जिसको अकारण ही दिशाएँ हरी, पीली और शुभ रूप में दिखलायी पड़ें तथा गन्ध का ज्ञान भी जिसे न हो उसकी मृत्यु निश्चित है ।149।। शशिसूयौं गतौ यस्य सुखस्वात्योपशीतलौ । मरणं तस्य निर्दिष्टं शीघ्रतोरिष्टवेदिभि: ॥150॥ जिसे सूर्य और चन्द्रमा दिखलायी न पड़ें तथा जिसके मुख से श्वास अधिक और तेजी से निकलता हो उसका शीघ्र मरण विद्वानों ने कहा है ।।15011 जिहा मलं न मुञ्चति न वेत्ति रसना रसम। निरीक्षते न रूपञ्च सप्तदिनं स जीवति ॥151॥ जिसकी जिह्वा पर सर्वदा अधिक मैल रहता हो तथा जिसे किसी भी रस का स्वाद न आता हो और न वस्तुओं के रूप को देख पाता हो उसकी आयु सात दिन की होती है ॥1510 वह्निचन्द्रौ न पश्येच्च शुभ्र वदति कृष्णकम् । तुङ्गच्छायां न जानाति मृत्युस्तस्य समागत: ॥152॥ जिसे अग्नि और चन्द्रमा दिखलायी न पड़ते हों और काली वस्तु श्वेत मालूम पड़ती हो, उन्नत छाया परिज्ञात न हो उसकी आसन्न मृत्यु रहती है ।।1 52।। मन्त्रित्वा स्वमुखं रोगी जानुदध्ने जले स्थित: । न पश्येत् स्वमुखच्छायां षण्मासं तस्य जीवितम् ॥153॥ जो रोगी मंत्रित होकर घुटने पर्यन्त जल में खड़ा हो अपने मुख की छायाप्रतिबिम्ब न देख सके उसकी आयु छह महीने की होती है ।। 53।।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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