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________________ सप्तविंशतितमोऽध्यायः 459 मित्रकार्यादि विधायक नक्षत्र मृगान्त्यचित्रामित्रक्षं मृदुमैत्रं भृगुस्तथा । तत्र गीताम्बरक्रीडामित्रकार्य विभूषणम् ॥ मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा ये चार नक्षत्र और शुक्रवार इनकी मृदु और मैत्र संज्ञा है । इनमें गाना, वस्त्र पहनना, स्त्री के साथ रति करना, मित्र का कार्य और आभूषण पहनना शुभ होता है । पशओं को शिक्षित करना तथा दारु-तीक्ष्ण कार्य विधायक नक्षत्र मलेन्द्रार्द्राहिभं सौरिस्तीक्ष्णं दारुसंज्ञकम् । तत्राभिचारघातोग्रभेदाः पशुदमादिकम् ।। मूल, ज्येष्ठा, आर्द्रा, आश्लेषा ये चार नक्षत्र और शनि तीक्ष्ण और दारुसंजक हैं । इनमें भयानक कार्य करना, मारना पीटना, हाथी-घोड़े आदि को सिखलाना ये कार्य सिद्ध होते हैं। ग्रहों का स्वरूप ग्रहों का स्वरूप जान लेना भी आवश्यक है। सूर्य-यह पूर्व दिशा का स्वामी, पुरुष ग्रह, सम वर्ण, पित्त प्रकृति और पाप ग्रह है। यह सिंह राशि का स्वामी है । सूर्य आत्मा, स्वभाव, आरोग्यता, राज्य और देवालय का सूचक है। पिता के सम्बन्ध में सूर्य से विचार किया जाता है। नेत्र, कलेजा, मेरुदण्ड और स्नायु आदि अवयवों पर इसका विशेष प्रभाव पड़ता है। यह लग्न से सप्तम स्थान में बली माना गया है। मकर से छः राशि पर्यन्त चेष्टाबली है । इससे शारीरिक रोग, सिरदर्द, अपच, क्षय, महाज्वर, अतिसार, मन्दाग्नि, नेत्रविकार, मानसिक रोग, उदासीनता, खेद, अपमान एवं कलह आदि का विचार किया जाता है। चन्द्रमा—पश्चिमोत्तर दिशा का स्वामी, स्त्री, श्वेतवर्ण और गलग्रह है। यह कर्कराशि का स्वामी है । वातश्लेष्मा इसकी धातु है । माता-पिता, चित्तवृत्ति, शारीरिक पुष्टि, राजानुग्रह, सम्पत्ति और चतुर्थ स्थान का कारक है। चतुर्थ स्थान में चन्द्रमा बली और मकर से राशियों में इसका चेष्टाबल है । कृष्ण पक्ष की षष्ठी से शुक्ल पक्ष की दशमी तक क्षीण चन्द्रमा रहने के कारण पापग्रह और शुक्ल पक्ष की दशमी से कृष्ण पक्ष की पंचमी तक पूर्ण ज्योति रहने से शुभग्रह और बली भाना गया है। इससे पाण्डुरोग, जलज तथा कफज रोग, मूत्रकृच्छ, स्त्रीजन्य रोग, मानसिक रोग, उदर और मस्तिष्क सम्बन्धी रोगों का विचार किया जाता है। मगल-दक्षिण दिशा का स्वामी, पुरुष जाति, पित्तप्रकृति, रक्तवर्ण और
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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