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________________ 456 भद्रबाहुसंहिता धान्यं पुनर्वसौ वस्त्रं पुष्य: सर्वार्थसाधकः । आश्लेषासु भवेद्रोगः श्मशानं स्यान्मघासु च ॥5॥ पुनर्वसु में नवीन वस्त्र या नवीन वस्तु धारण करने से धान्य की प्राप्ति होती है, पुष्य नक्षत्र में धारण करने से सभी अभिलाषाओं की पूर्ति होती है, आश्लेषा में रोग होता है और मघा नक्षत्र में श्मशान -मरण प्राप्त होता है ।।5।। पूर्वाफाल्गुनी शुभदा राज्यदोत्तरफाल्गुनी। वस्त्रदा संस्मृता लोके तूत्तरभाद्रपदा शुभा ॥6॥ पूर्वा फाल्गुनी में नवीन वस्त्र धारण करने से शुभ होता है, उत्तरा फाल्गुनी में राज्य की प्राप्ति होती है, और उत्तराभाद्रपद शुभ और वस्त्र देने वाली कही गयी है ।।6।। हस्ते च ध्रुवकर्माणि चित्रास्वाभरणं शुभम् । मिष्टान्नं लभ्यते स्वातौ विशाखा प्रियदशिका ॥7॥ हस्त नक्षत्र में ध्र व कार्य-स्थिर कार्य करना शुभ होता है, चित्रा नक्षत्र में आभरण धारण करना शुभ होता है, स्वाति नक्षत्र में वस्त्र, आभरण धारण करने से मिष्टान्न की प्राप्ति होती है और विशाखा नक्षत्र में धारण करने से प्रिय का दर्शन होता है ॥7॥ अनुराधा वस्त्रदात्री ज्येष्ठा वस्त्रविनाशिनी। मरणाय तथैवोक्ता हानिकारणलक्षणा ॥8॥ नये वस्त्रावरण धारण करने वालों को अनुराधा नक्षत्र वस्त्र देने वाला, ज्येष्ठा वस्त्र का विनाश करने वाला, मरण देने वाला और हानि करने वाला होता है ॥8॥ मूलेन क्लिश्यते वस्त्रं पूषायां रोगसम्भवः । उत्तरा वस्त्रदा ख्याता श्रवणो नेत्ररोगदः ॥9॥ मूल नक्षत्र में वस्त्र धारण करने वाले को क्लेश, पूर्वाषाढ़ा में रोग, उत्तरा भाद्रपद में वस्त्र-प्राप्ति और श्रवण नक्षत्र में नवीन वस्त्राभरण धारण करने से नेत्र रोग होता है ।।9। धनिष्ठा धनलाभाय शतभिषा विषाद्भयम्। पूर्वभाद्रपदात्तोयमुत्तरा बहुवस्त्रदा ॥10॥ 1. राज्ञश्चोतर । 2. पूभायां ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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