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________________ षड्विंशतितमोऽध्यायः स्वप्नमाला दिवास्वप्नोऽनष्टचिन्ता मयः फलम् । प्रकृता- कृतस्वप्नंश्च नैते ग्राह्या निमित्ततः ॥2॥ स्वप्नमाला, दिवास्वप्न, चिन्ताओं से उत्पन्न, रोग से उत्पन्न और प्रकृति के विकार के उत्पन्न स्वप्नफल के लिए नहीं ग्रहण करना चाहिए ॥2॥ कर्मजा द्विविधा यत्र शुभाश्चानाशुभास्तथा । विविधा: संग्रहाः स्वप्नाः कर्मजाः पूर्वसञ्चिताः ॥3॥ कर्मोदय से उत्पन्न स्वप्न दो प्रकार के होते हैं-- शुभ और अशुभ तथा पूर्व संचित कर्मोदय से उत्पन्न स्वप्न तीन प्रकार के होते हैं ||3|| भवान्तरेषु चाभ्यस्ता भावा: सफल- निष्फलाः । तान् प्रवक्ष्यामि तत्त्वेन शुभाशुभफलानिमान् ॥4॥ 431 जो सफल या निष्फल भाव भवान्तरों में अभ्यस्त हैं, उनके शुभाशुभ फलदायक भावों को यथार्थ रूप से निरूपण करता हूँ ॥ 4 ॥ जलं जलरुहं धान्यं सदलाम्भोजभाजनम् । मणि- मुक्ता - प्रवालांश्च स्वप्ने पश्यन्ति श्लेष्मिकाः ॥5॥ जल, जल से उत्पन्न पदार्थ, धान्य, पत्र सहित कमल, मणि, मोती, प्रवाल आदि को स्वप्न में कफ प्रकृति वाला व्यक्ति देखता है ||5|| रक्त-पीतानि द्रव्याणि यानि पुष्टान्यग्निसम्भवान् । तस्योपकरणं विन्द्यात् स्वप्ने पश्यन्ति पैत्तिकाः ॥6॥ रक्त-पीत पदार्थ, अग्नि संस्कार से उत्पन्न पदार्थ, स्वर्ण के आभूषण - उपकरण आदि को पित्त प्रकृति वाला व्यक्ति स्वप्न में देखता है ||6|| च्यवनं प्लवनं यानं पर्वताऽग्रं द्र ुमं गृहम् । आरोहन्ति नराः स्वप्ने वातिका: पक्षगामिनः ॥ 7 ॥ वायु प्रकृति वाला व्यक्ति गिरना, तैरना, सवारी पर चढ़ना, पर्वत के ऊपर चढ़ना, वृक्ष और प्रासाद पर चढ़ना आदि वस्तुओं को स्वप्न में देखता है ||7|| सिंह- व्याघ्र - गजयुक्तो गो-वृषाश्वैर्नरैर्युतः । रथमारुह्य यो याति पृथिव्यां स नृपो भवेत् ॥8॥ जो सिंह, व्याघ्र, गज, गाय, बैल, घोड़ा और मनुष्यों से युक्त होकर रथ पर चढ़कर गमन करते हुए स्वप्न में देखता है वह राजा होता है ॥8॥
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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