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________________ पंचविंशतितमोऽध्यायः 421 शुक्र-उदय के दिन नक्षत्रानुसार फल ___अश्विनी में शुक्र के उदय होने पर जौ, तिल, उड़द का भाव तेज होता है। भरणी में शुक्र का उदय होने से तृण, धान्य, तिल, उड़द, चावल, गेहूँ का भाव तेज होता है। कृत्तिका में शुक्र उदय होने से सभी प्रकार के अन्न सस्ते होते हैं । रोहिणी में समर्घता, मृगशिरा में धान्य महँगे, आर्द्रा में अल्पवृष्टि होने से महँगाई, पुनर्वसु में अन्न का भाव महँगा, पुष्य में धान्य भाव अत्यन्त महँगा तथा आश्लेषा से अनुराधा नक्षत्र तक शुक्र के उदय होने से तृण, अन्न, काष्ठ, चतुष्पद आदि सभी पदार्थ महंगे होते हैं । शुक्र और शनि जब दोनों एक राशि पर अस्त हों तो सब अनाज तेज होते हैं । शुक्र वक्री हो तो सभी अनाज मन्दे तथा, घृत, तेल तेज होते हैं । शुक्र के मार्गी होने पर 5 दिनों के उपरान्त सोना, चाँदी, मोती, जवाहरात आदि महंगे होते हैं। __ शनि का फलादेश-शनि के उदय के तीन दिन बाद रूई तेज होती है । मूंग मशाले, चावल, गेहूँ के भावों में घटा-बढ़ी होती रहती है। अश्विनी और भरणी नक्षत्र में शनि वक्री हो तो एक वर्ष तक पीड़ा; धान्य और चौपायों का मूल्य बढ़ जाता है । मघा पर वक्री होकर आश्लेषा पर जब गुरु आता है तो गेहूँ, घृत, शाल, प्रबाल तेज होते हैं । ज्येष्ठा पर वक्री होकर अनुराधा पर शनि आता है तो सभी वस्तुएं तेज होती हैं । उत्तराषाढ़ा पर वक्री होकर पूर्वाषाढ़ा पर आता है तो सभी वस्तुओं में अत्यधिक घटा-बढ़ी होती है । गुरु और शनि दोनों एक साथ वक्री हों और शनि 10/11 राशि का हो तो गेहूँ, तिल, तेल आदि पदार्थ 9 महीने तक तेज होते हैं। शनि के वक्री होने के तीन महीने उपरान्त गेहूँ, चावल, मूंग, ज्वार, धान्य, खजूर, जायफल, घी, हल्दी, नील, धनियाँ, जीरा, मेंथी, अफीम, घोड़ा आदि पदार्थ तेज और सोना, चाँदी, मणि, माणिक्य आदि पदार्थ मन्दे एवं नारियल, सुपाड़ी, लवंग, तिल, तेल आदि पदार्थों में घटा-बढ़ी होती रहती है। शनि मार्गी हो तो दो मास में तेल, हींग, मिर्च मशाले को तेज और अफीम, रूई, सूत, वस्त्र आदि पदार्थों को मन्दा करता है । यदि शनि कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य और आश्लेषा नक्षत्र में वक्री हो तो सभी वस्तुएं महंगी होती हैं। तेजी-मन्त्री के लिए उपयोगी पंचवार का फल-जिस महीने में पाँच रविवार हों उस महीने में राज्यभय, महामारी, सोना आदि पदार्थों में तेजी होती है। किसी भी महीने में पांच सोमवार होने से सम्पूर्ण पदार्थ मन्दे, घृत-तेल-धान्य के भाव मन्दे रहते हैं। पांच मंगलवार होने से अग्नि-भय, वर्षा का निरोध, अफीम मन्दी तथा धान्यभाव घटता-बढ़ता रहता है । पाँच बुधवार होने से घी, गुड़, खाँड़ आदि रस तेज होते हैं; रूई, चाँदी घट-बढ़कर अन्त में तेज होती है। पांच गुरुवार होने से सोना, पीतल, सूत, कपड़ा, चावल, चीनी आदि पदार्थ मन्दे होते हैं। पाँच
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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