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________________ त्रयोविंशतितमोऽध्यायः 395 पीड़ित होते हैं ।।52-530 एवं च जायते सर्व करोति विकृति यदा। तदा प्रजा विनश्यन्ति दुभिक्षेण भयेन च ॥54॥ इस प्रकार चन्द्रमा के विकृत होने से दुर्भिक्ष और भय द्वारा प्रजा का विनाश होता है ।। 54।। अर्धमासं यदा चन्द्र ग्रहा यान्ति विदक्षिणम। तदा चन्द्रो जयं कुर्यान्नागरस्य महीपतेः ॥55॥ जब चन्द्रमा आधे महीने-पन्द्रह दिन का हो और उस समय अन्य ग्रह दक्षिण की ओर गमन करें तो चन्द्रमा नागरिक और राजा को विजय देता है ।।55॥ हीयमानं यदा चन्द्र ग्रहाः कर्वन्ति वामतः । तदा विजयमाख्यान्ति नागरस्य महीपतेः ॥56॥ जब चन्द्रमा क्षीण हो रहा हो—कृष्ण पक्ष में ग्रह चन्द्रमा को बायीं ओर करते हों तो नागरिक और राजा की विजय होती है ।।56।। गति-मार्गाकृति-वर्णमण्डलान्यपि वीथयः। चारं नक्षत्रचारांश्च ग्रहाणां शुक्रवद् विदुः ।।57॥ ग्रहों की गति, मार्ग, आकृति, वर्ण, मण्डल, वीथि, चार और नक्षत्र चार आदि शुक्र के समान समझना चाहिए ।।57।। चन्द्रस्य चारं चरतोऽन्तरिक्षे सचारदुश्चारसमं प्रचारम् । चर्यायुतः खेचरसुप्रणीतं यो वेद भिक्षुः स चरेन्नृपाणाम् ॥58॥ चन्द्रमा के आकाश में विचरण करने पर सुचार और दुश्चार दोनों होते हैं । जो भिक्षु प्रसन्नतायुक्त चन्द्रमा की चर्या को जानता है, वह भिक्षु राजाओं के मध्य में विहार करता है ॥58।। इति नम्रन्थे भद्रबाहुके निमित्त चन्द्रचार संज्ञो नाम त्रयोविंशोऽध्यायः ।।23।। विवेचन-ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के दाहिने भाग में चन्द्रमा हो तो बीज, जल और वन की हानि होती है। अग्निभय विशेष उत्पन्न होता है । जब विशाखा और अनुराधा नक्षत्र के दायें भाग में चन्द्रमा रहता 1. चन्द्रमु०।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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