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________________ त्रयोविंशतितमोऽध्यायः 393 जब चन्द्रमा का अन्य किसी ग्रह के साथ युद्ध होता है, तब नागरिकों में परस्पर फूट रहती है और यायियों - आक्रमिकों की पराजय होती है ॥39॥ भार्गव: 1 गुरवः प्राप्तो पुष्यभिश्चित्रया सह । ब्रह्माणसदृशं फलम् ॥40॥ शकस्य चापरूपं च यदि इन्द्रधनुष के समान सुन्दर चन्द्रमा पुष्य और चित्रा नक्षत्र के साथ शुक्र और गुरु बृहस्पति को प्राप्त करे तो ब्राह्मण सदृश फल होता है ॥40॥ क्षत्रियाश्च भुवि ख्याताः कौशाम्बी देवतान्यपि । पीड्यन्ते तद्भक्ताश्च सङग्रामाश्च गुरोर्वधः ॥41॥ उक्त प्रकार की चन्द्रमा की स्थिति में भूमि में प्रसिद्ध कौशाम्बी आदि क्षत्रिय तथा उनके भक्त पीड़ित होते हैं और युद्ध होते हैं जिससे गुरुजनों की हिंसा होती ||41|| पशवः पक्षिणो वैद्या महिषाः शबराः शकाः । सिंहला द्रामिला: काचा बन्धुकाः पह्नवा नृपाः ॥42॥ पुलिन्द्रा: कोंकणा मोजाः कुरवो दस्यवः क्षमाः । शनैश्चरस्य घातेन पीड्यन्ते यवनैः सह ॥ 43॥ चन्द्रमा के द्वारा शनि के घातित होने से पशु, पक्षी, वैद्य, महिष - भैंस, शबर, शक, सिंहल, द्रामिल, काच, बन्धुक, पह्नव नृप, पुलिन्द्र, कोंकण, भोज, कुरु दस्यु, क्षमा आदि प्रदेशवासी यवनों चे साथ पीड़ित होते हैं ।। 42-43।। यस्य यस्य च नक्षत्रमेकशो द्वन्द्वशोऽपि वा । ग्रहा वामं प्रकुर्वन्ति तं तं हिंसन्ति सर्वशः ॥44 जिस-जिस नक्षत्र को अकेला ग्रह या दो-दो ग्रह वाम - बायीं ओर करे, उसउस नक्षत्र का घात सभी ओर से करते हैं ॥44॥ जन्मनक्षत्रघातेऽथ राज्ञो यात्रा न सिद्ध्यति । नागरेण हतश्चाल्प: स्वपक्षाय न यो भवेत् ॥45॥ यदि कोई राजा जन्मनक्षत्र के घातित होने पर यात्रा करे तो उसकी यात्रा सफल नहीं होती है । जो नगरवासी स्वपक्ष में नहीं होते हैं, उनके द्वारा अल्पघात होता है |45|| 1. स्थावरा मु० । 2. ब्राहमी गुदभदृशाम् मु० । 3. देवता अपि मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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