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________________ प्रस्तावना आभूषणों की चिन्ता समझनी चाहिए। उत्तराक्षर वर्गों के प्रश्नाक्षर होने पर दक्षिण अंग का आभूषण और अधराक्षर प्रश्नवर्णों के होने पर वाम अंग का आभूषण समझना चाहिए। अ क ख ग घ ङ प्रश्नाक्षरों के होने पर या प्रश्नवर्गों में उक्त प्रश्नाक्षरों की बहुलता होने पर देवों के उपकरण छत्र, चमर आदि आभूषण और त थ द ध न प फ ब भ म इन प्रश्नवर्गों के होने पर पक्षियों के आभूषणों की चिन्ता समझनी चाहिए। ___ यदि प्रश्नवाक्य का आद्यवर्ण क ग ङ च ज ञ ट ड ण त द न प ब म य ल श स इन अक्षरों में से कोई हो तो हीरा, माणिक्य, मरकत, पद्मराग और मूंगा की चिन्ता; ख घछ झ ठ ढ थ ध फ भ र व ष ह इन अक्षरों में से कोई हो तो हरिताल, शिला, पत्थर, आदि की चिन्ता एवं उ ऊ अं अः स्वरों से युक्त व्यंजन प्रश्न के आदि में हो तो शर्करा, लवण, बालू आदि की चिन्ता समझनी चाहिए। यदि प्रश्नवाक्य के आदि में अ इ ए ओ इन चार मात्राओं में से कोई हो तो हीरा, मोती, माणिक्य आदि जवाहरात की चिन्ता; आ ई ऐ औ इन मात्राओं में से कोई हो तो शिला, पत्थर, सीमेण्ट, चूना, संगमरमर आदि की चिन्ता एवं उ ऊ अं अः इन मात्राओं में से कोई मात्रा हो तो चीनी, बालू आदि की चिन्ता कहनी चाहिए । मुष्टिका प्रश्न में मुट्ठी के अन्दर भी इन्हीं प्रश्न विचारों के अनुसार योनि का निर्णय कर वस्तु बतलानी चाहिए। मूलयोनि के चार भेद हैं-वृक्ष, गुल्म, लता और वल्ली। यदि प्रश्नवाक्य के आद्यवर्ण की मात्रा आ हो तो वृक्ष, ई हो तो गुल्म, ऐ हो तो लता और औ हो तो वल्ली समझनी चाहिए। पुनः मूलयोनि के चार भेद हैं-वल्कल, पत्ते, पुष्प और फल । प्रश्न वाक्य के आदि में क च ट त वर्गों के होने पर फल की चिन्ता करनी चाहिए। __ जीव योनि से मानसिक चिन्ता और मुष्टिगत प्रश्नों के उत्तरों के साथ चोर की जाति, अवस्था, आकृति, रूप, कद, स्त्री, पुरुष एवं बालक आदि का पता लगाया जा सकता है। धातु योनि में चोरी गयी वस्तु का स्वरूप और नाम बताया जा सकता है । धातु योनि के विश्लेषण से कहा जा सकता है कि अमुक प्रकार की वस्तु चोरी गयी है या नष्ट हुई है । इन योनियों के विचार द्वारा किसी भी व्यक्ति की मनःस्थिति का सहज में पता लगाया जा सकता है। प्रश्नशास्त्र का विवेचन करने वाले व्यक्ति को उपर्युक्त सभी प्रश्न संज्ञाओं का परिज्ञान रहना चाहिए । ____ लाभालाभ सम्बन्धी प्रश्नों का विचार करते हुए कहा है कि प्रश्नाक्षरों में आलिंगित अ इ ए ओ मात्राओं के होने पर शीघ्र अधिक लाभ, अभिधूमित आ ई ऐ औ मात्राओं के होने पर अल्प लाभ एवं दग्ध उ ऊ अं अः मात्राओं के होने पर अलाभ एवं हानि होती है। उ ऊ अं अः इन चार मात्राओं से संयुक्त क ग ङ च ज ब ट ड ण त द न प ब म य ल श स ये प्रश्नाक्षर हों तो बहुत लाभ होता
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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