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________________ त्रयोविंशतितमोऽध्यायः जब सुप्रभ प्रकृतिस्थ चन्द्रमा गजवीथि, नागवीथि में गमन करता है, तब सुभिक्ष, कल्याण और महावर्षा होती है ॥26॥ वैश्वानरपथं प्राप्ते चतुरङ्गस्तु दृश्यते । सोमो विनाशकृल्लोके तदा वाऽग्निभयङ्करः ॥27॥ जब चतुरंग चन्द्रमा वैश्वानर पथ में गमन करता हुआ दिखलायी पड़ता है तब लोक का विनाश होता है अथवा भयंकर अग्नि का प्रकोप होता है ॥27॥ अजवीथी मागते चन्द्र क्षुत्तृषाग्निभयं नृणाम् । विवर्णो होनरश्मिर्वा भद्रबाहुवचो यथा ॥28॥ विवर्ण या हीन रश्मिवाला चन्द्रमा अजवीथि में गमन करता हुआ दिखलायी पड़े तो मनुष्यों को क्षुधा, तृषा और अग्नि का भय रहता है, ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है ॥28॥ गोवीथ्यां नागवीथ्यां च चतुर्थ्यां दृश्यते शशी । रोगशस्त्राणि वैराणि वर्षस्य च विवर्धयेत् ॥29॥ जब चन्द्रमा चतुर्थी तिथि में गोवीथि या नागवीथि में गमन करता हुआ दिखलायी पड़े तब उस वर्ष रोग, शस्त्र और शत्रुता वृद्धिंगत होती है ॥29॥ एरावणे चतुष्प्रस्थो महावर्ष स उच्यते । चन्द्र: प्रकृतिसम्पन्नः सुरश्मिः श्रीरिवोज्ज्वलः ॥30॥ 391 यदि चन्द्रमा प्रकृति सम्पन्न, सुन्दर किरण वाला, सुन्दर श्री के समान उज्ज्वल चतुष्पथ ऐरावत मार्ग में दिखलाई पड़े तो वह महावर्ष होता है ॥30॥ श्यामच्छिद्रश्च पक्षादौ यदा दृश्यते यः सितः । चन्द्रमा रौरवं घोरं नृपाणां कुरुते तदा ॥31॥ जब चन्द्रमा काला और छिद्र युक्त प्रथम पक्ष - कृष्ण पक्ष में दिखलायी पड़े तो उस समय मनुष्यों में घोर संघर्ष होता है ॥31॥ धनुषा यदि तुल्यः स्यात् पक्षादौ दृश्यते शशी । ब्रूयात् पराजयं पृष्ठे युद्धं चैव विनिर्दिशेत् ॥32॥ यदि प्रथम पक्ष में चन्द्रमा धनुष के तुल्य दिखलायी पड़े तो पराजय होती है और पीछे युद्ध होता है ||32|| 1. शैशवं मु० । 2. पद्यो प्रति मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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