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________________ 350 भद्रबाहुसंहिता जब प्रतिपदा तिथि को चन्द्रमा प्रकृति से विकृत हो और भिन्न वर्ण का हो तो ग्रहागम जानना चाहिए ।।8।। लिखेद रश्मिभिर्भूयो वा यदाऽऽच्छायेत भास्करः । पूर्वकाले च सन्ध्यायां ज्ञेयो राहोस्तदाऽऽगम: ॥9॥ यदि सूर्य किरणों के द्वारा स्पर्श करे अथवा पूर्वकाल की सन्ध्या में सूर्य के द्वारा आच्छादन हो तो राहु का आगम समझना चाहिए ॥9॥ पशु-व्याल-पिशाचानां सर्वतोऽपरदक्षिणम् । तुल्यान्यभ्राणि वातोल्के यदा राहोस्तदाऽऽगमः ॥10॥ राहु के आगमन होने पर पशु, सर्प, पिशाच आदि दक्षिण से चारों ओर दिखलाई पड़ते हैं तथा समान मेघ, वायु और उल्कापात भी होता है ।।10।। सन्ध्यायां तु यदा शीतं अपरेसासनं तत:। सूर्य: पाण्डुश्चला भूमिस्तदा ज्ञेयो ग्रहागमः ॥11॥ जब सन्ध्या में शीत हो, अन्य समय में उष्णता हो, सूर्य पाण्डुवर्ण हो, भूमि चल हो तो ग्रहागम समझना चाहिए ।।11॥ सरांसि सरितो वक्षा वल्ल्यो गुल्म-लतावनम् । सौम्यभ्रांश्चवले वृक्षा राहो यस्तदाऽऽगमः ॥12॥ तालाब, नदी, वृक्ष, लता, वन, सौम्य कान्तिवाले हों और वृक्ष चंचल हों तो राहु का आगम समझना चाहिए ।। 1 2।। छादयेच्चन्द्र-सूर्यो च यदा मेघा सिताम्बरा। सन्ध्यायां च तदा ज्ञेयं राहोरागमनं ध्रुवम् ॥13॥ जब सन्ध्याकाल में आकाश में मेघ चन्द्र और सूर्य को आच्छादित कर दें, तब राहु का आगमन समझना चाहिए ॥13॥ एतान्येव तु लिङ्गानि भयं कर्यरपर्वणि। वर्षासु वर्षदानि स्युर्भद्रबाहुवचो यथा ॥14॥ उक्त चिह्न अपर्व-पूर्णिमा और अमावास्या से भिन्न काल में भय उत्पन्न करते हैं । वर्षा में ऋतु वर्षा करनेवाले होते हैं, ऐसा भद्रबाहु स्वापी का वचन है ।। 14॥ 1. सौस्वभ्राश्चंवले मु० । 2. सिताम्बरे मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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