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________________ 348 भद्रबाहुसंहिता प्रकोप, नाना प्रकार की व्याधियों का विकास एवं हर तरह से जनता को कष्ट होता है। मघा में मंगल के रहने से तिल, उड़द, मूंग का विनाश,मवेशी को कष्ट, जनता में असन्तोष, रोग की वृद्धि, वर्षा की कमी, मोटे अनाजों की अच्छी उत्पत्ति तथा देश के पूर्वीय प्रदेशों में सुभिक्ष होता है। पूर्वाफाल्गुनी और उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रों में मंगल के रहने से खण्डवृष्टि, प्रजा को पीड़ा, तेल, घी के मूल्यों में वृद्धि, थोड़ा जल एवं मवेशी के लिए कष्टप्रद होता है। हस्त नक्षत्र में तृणाभाव होने से चारे की कमी बराबर बनी रह जाती है, जिससे मवेशी को कष्ट होता है। चित्रा में मंगल हो तो रोग और पीड़ा, गेहूँ का भाव तेज; चना, जौ और ज्वार का भाव कुछ सस्ता होता है। धर्मात्मा व्यक्तियों को सम्मान और शक्ति की प्राप्ति होती है। विश्व में नाना प्रकार के संकट बढ़ते हैं। स्वाति नक्षत्र में मंगल के रहने से अनावृष्टि, विशाखा में कपास और गेहूं की उत्पत्ति कम तथा इन वस्तुओं का भाव महंगा होता है । अनुराधा में सुभिक्ष और पशुओं को पीड़ा, ज्येष्ठा में मंगल हो तो थोड़ा जल और रोगों की वृद्धि; मूल नक्षत्र में मंगल हो तो ब्राह्मण और क्षत्रियों को पीड़ा, तृण और धान्य का भाव तेज, पूर्वाषाढ़ा या उत्तराषाढ़ा में मंगल हो तो अच्छी वर्षा, पृथ्वी धन-धान्य से परिपूर्ण, दूध की वृद्धि, मधुर पदार्थों की उन्नति; श्रवण में धान्य की साधारण उत्पत्ति, जल की वर्षा, उड़द, मूंग आदि दाल वाले अनाजों की कमी तथा इनके भाव में तेजी; धनिष्ठा में मंगल के होने से देश की खूब समृद्धि, सभी पदार्थों का भाव सस्ता, देश का आर्थिक विकास, धन-जन की वृद्धि, पूर्व और पश्चिम के सभी राज्यों में सुभिक्ष, उत्तर के राज्यों में एक महीने के लिए अर्थसंकट, दक्षिण में सुख-शान्ति, कला-कौशल का विकास, मवेशियों की वृद्धि और सभी प्रकार से जनता को सुख; शतभिषा में, मंगल के होने से कीट, पतंग, टीडी, मूषक आदि का अधिक प्रकोप, धान्य की अच्छी उत्पत्ति; पूर्वाभाद्रपद में मंगल के होने से तिल, वस्त्र, सुपारी और नारियल के भाव तेज होते हैं । दक्षिण भारत में अनाज का भाव महंगा होता है। उत्तराभाद्रपद में मंगल के होने से सुभिक्ष, वर्षा की कमी और नाना प्रकार के देशवासियों को कष्ट एवं रेवती नक्षत्र में मंगल के होने से धान्य की अच्छी उत्पत्ति, सुख, सुभिक्ष, यथेष्ट वर्षा, ऊन और कपास की अच्छी उपज होती है। रेवती नक्षत्र का मंगल काश्मीर, हिमाचल एवं अन्य पहाड़ी प्रदेशों के निवासियों के लिए उत्तम होता है। मंगल का किसी भी राशि पर वक्री होना तथा शनि और मंगल का एक ही राशि पर वक्री होना अत्यन्त अशुभकारक होता है। जिस राशि पर उक्त ग्रह वक्री होते हैं उस राशि वाले पदार्थों का भाव महंगा होता है तथा उन वस्तुओं की कमी भी हो जाती है।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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