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________________ 332 भद्रबाहुसंहिता नक्षत्राणि चरेत्पञ्च पुरस्तादुत्थितो बुधः । ततश्चास्तमित: षष्ठे सप्तमे दृश्यते परः॥7॥ ___ सम्मुख उदय होकर बुध पांच नक्षत्र प्रमाण गमन करता है, छठे नक्षत्र पर अस्त होता है और सातवें पर पुनः दिखलाई पड़ता है ।।7।। उदित: पष्ठतः सोम्यश्चत्वारि चरति ध्रुवम् । पञ्चमेऽस्तमितः षष्ठे दृश्यते पूर्वतः पुनः ॥8॥ पृष्ठतः उदित होकर बुध चार नक्षत्र प्रमाण गमन करता है, पांचवें नक्षत्र पर अस्त होता है और छठे पर पुनः दिखलाई पड़ता है ।।8।। चत्वारि षट् तथाऽष्टौ च कुर्यादस्तमनोदयौ । सौम्यायां तु विमिश्रायां संक्षिप्तायां यथाक्रमम् ॥9॥ सौम्या, विमिश्रा और संक्षिप्ता गति में क्रमशः चार, छ: और आठ नक्षत्रों पर अस्त और उदय को बुध प्राप्त होता है ।।9।। नक्षत्रमस्य चिह्नानि गतिभिस्तिसभिर्यदा। पूर्वाभि: पूर्णसस्यानां तदा सम्पत्तिरुत्तमा॥10॥ उक्त तीनों गतियों में जब बुध नक्षत्रों को पुनः ग्रहण करता है तो पूर्ण रूप से धान्य की उत्पत्ति होती है और उत्तम सम्पत्ति रहती है ॥10॥ बुधो यदोत्तरे मार्गे सुवर्णः पूजितस्तदा। मध्यमे मध्यमो ज्ञेया जघन्यो दक्षिणे पथि ॥11॥ पूर्वोत्तर मार्ग में बुध अच्छे वर्ण वालों द्वारा पूजित होता है अर्थात् उत्तम फलदायक होता है। मध्य में मध्यम और दक्षिण मार्ग में जघन्य माना जाता है ॥11॥ वसु कुर्थादतिस्थूलो ताम्र: शस्त्रप्रकोपनः । अतश्चारुणवर्णश्च बुधः सर्वत्र पूजित: ॥12॥ अति स्थूल बुध धन की वृद्धि करता है, ताम्रवर्ण का बुध शस्त्र कोप करता है, सूक्ष्म और अरुण वर्ण का बुध सर्वत्र पूजित-उत्तम होता है ।।12।। पृष्ठत: पुरलम्भाय पुरस्तादर्थवृद्धये। स्निग्धो रूक्षो बुधो ज्ञेयः सदा सर्वत्रगो बुधैः ॥13॥ बुध का पीछे रहना नगर-प्राप्ति के लिए, सामने रहना अर्थ-वृद्धि के लिए और स्निग्ध और रूक्ष बुध सदा सर्वत्र गमन करने वाला होता है ।।13।। 1. नक्षत्रमनु गृह णाति मु० । 2. अणु- मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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