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________________ 318 भद्रबाहुसंहिता उत्तराषाढ़ा से भरणी तक-उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती, अश्विनी और भरणी इन नौ नक्षत्रों में बृहस्पति का दक्षिण मार्ग होता है। इस प्रकार बृहस्पति के नौ-नौ नक्षत्रों के तीन मार्ग बतलाये गये हैं ।।6।। मूलमुत्तरतो याति स्वाति दक्षिणतो व्रजेत् । नक्षत्राणि तु शेषाणि समन्ताद्दक्षिणोत्तरे॥7॥ उत्तर से मल को और दक्षिण से स्वाति नक्षत्र को प्राप्त करता है तथा दक्षिणोत्तर से शेष नक्षत्रों को प्राप्त करता है ।।7। मूषके तु यदा ह्रस्वो मूलं दक्षिणतो व्रजेत्। दक्षिणतस्तदा विन्द्यादनयोर्दक्षिणे पथि ॥8॥ जब केतु लघ होकर दक्षिण से मूल नक्षत्र की योर जाता है तो बृहस्पति और केतु दोनों ही दक्षिण मार्ग वाले कहे जाते हैं ॥8॥ अनावृष्टिहता देशा 'बुभुक्षाज्वरनाशिताः। चकारूढा प्रजास्तत्र बध्यन्ते जात तस्करा: ॥9॥ इन दोनों के दक्षिण मार्ग में रहने से अनावृष्टि-वर्षा का अभाव होता है, जिससे देश पीड़ित होते हैं। तेज़ ज्वर से अनेक व्यक्तियों की मृत्यु होती है प्रजा शासन में आरूढ़ रहती है और वर्णसंकरों का वध होता है ॥9॥ यदा चोत्तरत: स्वाति दीप्तो भ्याति बृहस्पतिः । उत्तरेण तदा विन्द्याद् दारुणं भयमादिशेत् ॥10॥ जब बृहस्पति दीप्त होकर उत्तर की ओर से स्वाति नक्षत्र को प्राप्त करता है तो उस समय उत्तर देश में दारुण भय होता है ।। 10॥ लुप्यन्ते च क्रियाः सर्वा नक्षत्रे गुरुपीडिते। दस्यवः प्रबला ज्ञेया न च बीजं प्ररोहति ॥11॥ गुरु के द्वारा नक्षत्र के पीड़ित होने पर सभी क्रियाओं का लोप होता है, चोरों की शक्ति बढ़ती है और बीज उत्पन्न नहीं होता है ।11।। दक्षिणेन तु वक्रेण पञ्चमे पञ्च मुच्यते। उत्तरे पञ्चके पञ्च मार्गे चरति गौतमः ॥12॥ 1. रूक्षज्वरविनाशिताः मु० । 2. संकरा: मु०। 3. यायाद् म० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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