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________________ 297 पंचदशोऽध्यायः की ओर दिखलाई पड़ता है ॥212।। गजवीथिमनप्राप्त: प्रवास करुते यदा। पंचाशीति तदाऽहानि गत्वा दृश्येत पृष्ठतः ॥213॥ गजवीथि को पुनः प्राप्त होकर शुक्र प्रवास करे तो 85 दिनों के पश्चात् पीछे की ओर दिखलाई पड़ता है ।।213।। __नागवीथिमनुप्राप्तः प्रवासं कुरुते यदा। पंचपंचाशतदा हानि गत्वा दृश्येत षष्ठत: ॥2140 नागवीथि को पुनः प्राप्त होकर शुक्र प्रवास करे तो 55 दिनों के पश्चात् पीछे की ओर दिखलाई पड़ता है ।।214।। वैश्वानरपथं प्राप्त: प्रवास करते यदा। चतुर्विशत्तदाऽहानि गत्वा दृश्येत पूर्वतः ॥215॥ वैश्वानर पथ को प्राप्त होकर शुक्र प्रवास करे तो 24 दिनों के पश्चात् पूर्व की ओर दिखलाई पड़ता है ।।215॥ मृगवीथिमनुप्राप्तः प्रवासं कुरुते यदा। द्वाविति तदाऽहानि गत्वा दृश्येत पूर्वत: ॥216॥ शक्र जब मगवीथि को पुनः प्राप्त होकर अस्त हो तो 22 दिनों के पश्चात् पूर्व की ओर दिखलाई पड़ता है ।।216।। अजवीथिमनुप्राप्त: प्रवासं कुरुते यदा। तदा विशतिरात्रेण पूर्वत: प्रतिदृश्यते ॥217॥ __ शुक्र जब अजवीथि को पुनः प्राप्त होकर अस्त हो तो 20 रात्रियों के पश्चात् पूर्व की ओर उदय होता है ।।217।। जरदगवपथं प्राप्तः प्रवासं कुरुते यदा। तदा सप्तदशाहानि गत्वा दृश्येत पूर्वत: ॥218॥ जब शुक्र जरद्गवपथ को प्राप्त होकर अस्त होता है तो 17 दिनों के पश्चात् पूर्व की ओर उदय होता है ।।218।। गोवीथीं समनुप्राप्तः प्रवासं कुरुते यदा। चतुर्दशदशाहानि गत्वा दृश्येत पूर्वतः ॥219॥ गोवीथि को प्राप्त होकर जब शुक्र अस्त होता है तो चौदह दिनों के पश्चात् पूर्व की ओर उदय होता है ।।219।।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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