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________________ पंचदशोऽध्यायः 287 हन्यादश्विनीप्राप्त: सिन्धुसौवीरमेव च । मत्स्यांश्च कुनटान रूढो मर्दमानश्च हिंसति ॥150॥ अश्विनी नक्षत्र में स्थित शुक्र सिन्धु और सौवीर देश का विनाश करता है। इस नक्षत्र का आरोहण और मर्दन करने से शुक्र मत्स्य और कुनटों का घात करता. है ॥1500 अश्वपण्योपजीविनो दक्षिणो हन्ति भार्गवः। तेषां व्याधि तथा मृत्यु सृजत्यथ तु 'वामगः । दक्षिणस्थ भार्गव-शुक्र अश्व-घोड़ों के व्यापारी और दुकानदारों का घात करता है और वामग शुक्र उनके लिए व्याधि और मृत्यु करता है ॥151॥ भृत्यकरान् यवनांश्च भरणीस्थ: प्रपीडयेत्। किरातान् मद्रदेशानामाभीरान्मर्द-रोहणे ॥152॥ भरणी स्थित शुक्र भृत्यकर्म करने वालों एवं यवनों-मुसलमानों को पीड़ा करता है। इस नक्षत्र का मर्दन और रोहण करने वाला शुक्र किरात, मद्र और आभीर देश का घात करता है ।।152।। प्रदक्षिणं प्रयातश्च द्रोणं मेघं निवेदयेत्। वामग: संम्प्रयातस्य रुद्रकर्माणि हिंसति ॥153॥ ___ इस नक्षत्र से दक्षिण की ओर गया शुक्र एक द्रोण प्रमाण मेघों की वर्षा करता है और बायीं ओर गया शुक्र रुद्र कार्यों का विनाश करता है ।153॥ एवमेतत फलं कुर्यादनुचारं तु भार्गवः। पूर्वत: पृष्ठतश्चापि "समाचारो भवेल्लघुः ॥154॥ इस प्रकार शुक्र अपने विचरण का फल देता है। पूर्व से और पीछे से शुक्र के गमन का संक्षिप्त फल कहा गया है ।।154॥ उदये च प्रवासे च ग्रहाणां कारणं रविः । प्रवासं छादयन्कुर्यात् मुञ्चमानस्तथोदयम् ॥155॥ ___ ग्रहों के उदय और प्रवास में कारण सूर्य है । यहाँ प्रवास का अभिप्राय ग्रहों के अस्त होने से है । जब सूर्य ग्रहों को अच्छादित करता है तो यह उनका अस्त कहा जाता है और जब छोड़ता है तो उदय माना जाता है।1551 1. भार्गवः मु० । 2. समाचारे तु यल्लघुः मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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