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________________ 284 भद्रबाहुसंहिता चंदन-लकड़ी आदि के द्वारा आजीविका करने वालों का विनाश करता है। 13 1॥ यदाऽरुहेत् प्रमर्देत कुटुम्बा भूश्च दुखिताः। कन्दमूलं फलं हन्ति दक्षिणो वामगो जलम् ॥132॥ दक्षिण की ओर से गमन करता हुआ शुक्र जब मूल नक्षत्र का आरोहण या प्रमर्दन करे तो कुटुम्ब, भूमि आदि दुःखित होती है, कन्द, मूल, फल का विनाश होता है और बायीं ओर से गमन करता हुआ जल का विनाश करता है ।।132॥ वामभूमिजलेचारं आषाढस्थ: प्रपीडयेत्। शान्तिकरश्च मेघश्च तालीरारोह-मर्दने ॥133॥ पूर्वाषाढा नक्षत्र में स्थित शुक्र सभी भूमि और जलचर आदि को पीड़ा देता है और शुक्र के आरोहण और मर्दन करने से शान्तिकर जल की वर्षा होती है।।133॥ दक्षिण: स्थविरान् हन्ति वामगो भयमावहेत् । सुवर्णो मध्यम: स्निग्धो भार्गवः सुखमावहेत् ॥134॥ दक्षिण की ओर से गमन कर पूर्वाषाढा नक्षत्र में विचरण करने वाला शुक्र स्थावरों-निवासी राजाओं का घात करता है और बायीं ओर गमन करने वाला शुक्र भय उत्पन्न करता है तथा सुन्दर, स्निग्ध मध्यम से गमन करने वाला शुक्र सुख उत्पन्न करता है ।।1341 यद्युत्तरासु तिष्ठेच्च पाञ्चालान् मालवत्रयान् । पीडयेन्मई येवोहाविश्वासाझेदकृत्तथा ॥135॥ यदि उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में शुक्र स्थित हो तो पाञ्चाल तथा तीनों मालवों की पीड़ित, मर्दित, द्रोहित एवं विश्वास के कारण भेद उत्पन्न करता है ॥135।। अभिजित्स्थ: कुरून् हन्ति कौरव्यान् क्षत्रियांस्तथा। *पशव: साधवश्चापि पीड्यन्ते रोह-मर्दने ॥136॥ अभिजित् नक्षत्र पर जब शुक्र स्थित रहता है तो कौरवों तथा क्षत्रियों का मर्दन करता है तथा अभिजित् नक्षत्र में आरोहण और मर्दन करने पर शुक्र पशु और साधुओं को पीड़ित करता है ।।136॥ यदा प्रदक्षिणं गच्छेत् पञ्चत्वं कुरुमादिशेत् । वामतो गच्छमानस्तु ब्राह्मणानां भयंकरः॥137।। इस नक्षत्र के लिए दक्षिण की ओर से जब शुक्र गमन करता है तो कुरुवंशी 1. भूमिजलचरान् मु० 1 2. भातकेशांश्च मरीश्च मु० । 3. नधश्च मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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