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________________ पंचदशोऽध्यायः 279 बायीं ओर से शुक्र गमन करे तो सोम और शर्मा नामधारियों के लिए कल्याणप्रद्र होता है। सोम, सोम से उत्पन्न और सोमपार्श्व की हिंसा करता है ।।101॥ वत्सा विदेहजिह्माश्च वसा 'मद्रास्तथोरगाः। पीड्यन्ते ये च तद्भक्ताः सन्ध्यानमारोहेत् यथा ॥102॥ वत्स, विदेह, कुन्तल, वसा, मद्रा, उरगपुर आदि प्रदेश शुक्र के बायीं ओर जाने पर पीड़ित होते हैं ॥102॥ अलंकारोपघाताय यदा दक्षिणतो व्रजेत् । सौम्ये सुराष्ट्र च तदा वामग: परिहिंसति ॥103॥ जब शुक्र दक्षिण की ओर से गमन करता है तो अलंकारों का विनाश होता है तथा बायीं ओर से गमन करने पर सुन्दर सुराष्ट्र का घात करता है ।103॥ आर्द्रा हत्वा निवर्तेत यदि शुक्र: कदाचन। संग्रामास्तत्र जायन्ते मांसशोणितकर्दमाः ॥104॥ यदि शुक्र आर्द्रा का घात कर परिवर्तित हो तो युद्ध होते हैं तथा पृथ्वी में रक्त और मास की कीचड़ हो जाती है ।104॥ तैलिका: सारिकाश्चान्तं चामुण्डामांसिकास्तथा। आषण्डाः क्रूरकर्माण: पीड्यन्ते तादृशेन यत् ॥105॥ उक्त प्रकार के शुक्र के होने से तेली, सैनिक, ऊंट, भैंसे तथा कूची आदि से कठोर क्रूर कार्य करने वाले पीड़ित होते हैं ।।105॥ दक्षिणेन यदा गच्छेद् द्रोणमेघ तदा दिशेत् । वामगो रुद्रकर्माणि भार्गव: परिहिंसति ॥106॥ यदि आर्द्रा का घात कर दक्षिण की ओर शुक्र गमन करे तो एक द्रोण प्रमाण जल की वर्षा होती है और बायीं ओर शुक्र गमन करे तो रौद्रकर्म-क्रूर कर्मों का विनाश होता है ।।106॥ पुनर्वसुं यदा रोहेद गाश्च गोजीविनस्तथा। हासं प्रहासं राष्ट्र च विदर्मान् दासकांस्तथा ॥107॥ जब शुक्र पुनर्वसु नक्षत्र में आरोहण करता है तो गाय और गोपाल आदि में 1. जिह वाश्च मु० । 2. भीमास्त मु० । 3. संव्याने मारुते यथा मु० । 4. सौरिकाश्चांगा उष्ट्रा माहिषकास्तथा । मु० । 5. ईषिडाः मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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