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________________ 274 भद्र बाहुसंहिता निचयाश्च विनश्यन्ति खारी द्वादशिका भवेत् । दानशीला नरा हृष्टा नागवीथीति संज्ञिता ॥70॥ नागवीथि में शुक्र के गमन करने से समुदायों की हानि होती है तथा द्वादश खारी प्रमाण धान्य उत्पन्न होता है और मनुष्य दानशील होते हैं ।।70।। एवमेव यदा शुक्रो व्रजत्युत्तरतस्तदा। स्थले धान्यानि जायन्ते शोभन्ते जलजानि वा ॥711 जब शुक्र उपर्युक्त नक्षत्रों में उत्तर की ओर से गमन करता है तो स्थल में भी फसल उत्पन्न होती है और जलज जीव शोभित होते हैं ।।710 सर्वोत्तरा नागवीथी सर्वदक्षिणतोऽग्निजा। गोवीथी मध्यमा ज्ञेया मार्गाश्चैवं त्रयः स्मृताः ॥72॥ नागवीथि सबसे उत्तर, वैश्वानर वीथि दक्षिण और गोवीथि मध्यमा होती है, इस प्रकार तीन प्रकार के मार्ग बतलाये गये हैं 172॥ उत्तरेणोत्तरं विद्यान्मध्यमे मध्यम फलम् । दक्षिण तु जघन्यं स्याद् भद्रबाहवचो यथा ॥73॥ उत्तरवीथि से गमन करने पर उत्तम फल, मध्यवीथि से गमन करने पर मध्यम फल और दक्षिण से गमन करने पर जघन्य फल होता है, ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है ।।73॥ यत्रोदितश्च विचरेन्नक्षत्रं भार्गवस्तथा। नृपं पुरं धनं मुख्यं पशु हन्याद् विलम्बक: ॥741 निम्न प्रकार प्रतिपादित रविवारादि क्रूर वारों में उक्त नक्षत्रों में जब शुक्र गमन करता है तो राजा, नगर, धान्य, धन और मुख्य पशुओं का अविलम्ब नाश होता है अर्थात् श्रेष्ठ वारों में उत्तर फल और क्रूर वारों में गमन करने पर निकृष्ट फल प्राप्त होता है 1740 आदित्ये विचरेद् रोगं मार्गेऽतुल्यामयं भयम् । गर्मोपघातं कुरुते ज्वलनेनाविलम्बितम् ॥75॥ ईतिव्याधिभयं चौरान कुरुतेऽन्तःप्रकोपनम् । . प्रविशन् भार्गव: सूर्ये जिह्म नाथ विलम्बिना ॥76॥ 1. हृष्टा मु० । 2. एषामैव मु० । 3. ईतिव्याधि-इत्यादि यह पंक्ति हस्तलिखित प्रति में अधिक मिलती है।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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