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________________ पंचदशोऽध्यायः 263 प्रहर लेना चाहिए) अतः 27+17+ 2=46:9=5 ल० और शेष 1 आया। यहाँ उदाहरण में एक शेष रहा है, अत: इसका प.ल घात होता है । अर्थात् किसी दुर्घटना का शिकार यह व्यक्ति होगा । पल्ली-पतन का फलादेश इस प्रकार का भी मिलता है कि प्रात:काल से लेकर मध्याह्न काल तक पल्लीपतन होने से विशेष अनिष्ट, मध्याह्न से सायंकाल तक पल्लीपतन होने से साधारण अनिष्ट और सन्ध्याकाल के उपरान्त पल्ली-पतन होने से फलाभाव होता है । किसी-किसी का यह भी मत है कि तीनों कालों की सन्ध्याओं में पल्ली-पतन होने से अधिक अनिष्ट होता है। इसका फल किसी-नकिसी प्रकार की अशुभ घटना का घटित होना है। दिन में सोमवार को पल्लीपतन होने से साधारण फल, मंगलवार को पल्ली-पतन का विशेष फल, बुधवार को पल्ली-पतन होने से शुभ फल की वृद्धि तथा अशुभ फल की हानि, गुरुवार को पल्ली-पतन होने से शुभ फल का अधिक प्रभाव तथा अशुभ फल साधारण, शुक्रवार को पल्ली-पतन होने से सामान्य फलादेश, शनिवार को पल्ली-पतन होने से अशुभ फल की द्धि और शुभ फल की हानि एवं रविवार को पल्ली-पतन होने से शुभ फल भी अशुभ फल के रूप में परिणत हो जाता है। पल्ली-पतन का अनिष्ट फल तभी विशेष होता है, जब शनि या रविवार को भरणी या आश्लेषा नक्षत्र में चतुर्थी या नवमी तिथि को सन्ध्याकाल में पल्ली-छिपकली गिरती है । इसका फल मृत्यु की सूचना या किसी आत्मीय की मृत्यु-सूचना अथवा किसी मुकद्दमे की पराजय की सूचना समझनी चाहिए। पञ्चदशोऽध्यायः अथात: सम्प्रवक्ष्यामि ग्रहचारं जिनोदितम् । तत्रादितः प्रवक्ष्यामि शुक्रचारं निबोधत ॥1॥ अब जिनेन्द्र भगवान के द्वारा प्रतिपादित ग्रहाचार का निरूपण करता हूँ। इसमें सबसे पहले शुक्राचार का वर्णन किया जा रहा है।।1।।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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