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________________ 242 भद्रबाहुसंहिता परिघार्गला कपाटं द्वारं रुन्धन्ति वा स्वयम्। पुररोधस्तदा विन्द्यान्नैगमानां महद्भयम् ॥114॥ यदि स्वयं ही बिना किसी के बन्द किये वेड़ा, साँकल और द्वार के किवाड़ बन्द हो जाये तो पुरोहित और वेद के व्याख्याताओं को महान् भय होता है ।।1141 यदा द्वारेण नगरं शिवा प्रविशते दिवा । वास्यमाना विकृता वा तदा राजवधो ध्रुवम् ॥115॥ यदि दिन में सियारिन—गीदड़ी नगर के द्वार से विकृत या सिक्त होकर प्रविष्ट हो तो राजा का वध होता है ।।। 151 अन्तःपुरेषु द्वारेषु विष्णुमित्रे तथा पुरे। अट्टालकेऽथ हट्टषु मधु लोनं विनाशयेत् ॥116॥ यदि सियारिन अन्तःपुर, द्वार, नगर, तीर्थ, अट्टालिका और बाजार में प्रवेश करे तो सुख का विनाश करती है ।।116।। धूमकेतुहतं मार्ग शुक्रश्चरति वै यदा। तदा तु सप्तवर्षाणि महान्तमनयं वदेत् ॥117॥ यदि शुक्र धूमकेतु द्वारा आक्रान्त मार्ग में गमन करे तो सात वर्षों तक महान् अन्याय-अकल्याण होता रहता है ।117।। गुरुणा प्रहतं मार्ग यदा भौम: प्रपद्यते। भयं तु सार्वजनिकं करोति बहुधा नृणाम् ॥18॥ यदि बृहस्पति के द्वारा प्रताडित मार्ग में मंगल गमन करे तो सार्वजनिक भय होता है तथा अधिकतर मनुष्यों को भय होता है ।।। 18॥ भौमेनापि हतं मार्ग यदा सौरि: प्रपद्यते। तदाऽपि शूद्रचौराणामनयं कुरुते नृणाम् ॥119॥ मंगल के द्वारा प्रताडित मार्ग में शनैश्चर गमन करे तो शूद्र और चोरों का अकल्याण होता है ।।। 19॥ सौरेण तु हतं मार्ग 'वाचस्पतिः प्रपद्यते। भयं सर्वजनानां तु करोति बहुधा तदा ॥120॥ 1. वाचम्म मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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