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________________ 234 भद्रबाहुसंहिता यदि चन्द्रमा या वरुण में कोई उत्पात दिखलाई पड़े तो सिन्धु देश, सौवीर देश, सौराष्ट्र-गुजरात और वत्सभूमि में मरण होता है। भोजन सामग्री में भय रहता है और राजा का मरण पूर्व में ही हो जाता है। पांच महीने के उपरान्त वहाँ घोर भय का संचार होता है अर्थात् भय व्याप्त होता है ।।64-65॥ रुद्र च वरुणे कश्चिदुत्पात: समदीर्यते। सप्तपक्षं भयं विन्द्याद ब्राह्मणानां न संशयः ॥66॥ शिवजी और वरुणदेव की प्रतिमा में यदि किसी भी प्रकार का उत्पात दिखलाई पड़े तो वहाँ ब्राह्मणों के लिए सात पक्ष अर्थात् तीन महीना पन्द्रह दिन का भय समझना चाहिए, इसमें किसी भी प्रकार का सन्देह नहीं है ।।66॥ इन्द्रस्य प्रतिमायां तु यद्युत्पात: प्रदृश्यते। संग्रामे त्रिषु मासेषु राज्ञ: सेनापतेर्वधः ॥67॥ यदि इन्द्र की प्रतिमा में कोई भी उत्पात दिखलाई पड़े तो तीन महीने में संग्राम होता है और राजा या सेनापति का वध होता है ।।67॥ यद्युत्पातो बलन्देवे तस्योपकरणेषु च । महाराष्ट्रान् महायोद्धान् सप्तमासान् प्रपीडयेत् ॥68॥ यदि बलदेव की प्रतिमा या उसके उपकरणों-छत्र, चमर आदि में किसी भी प्रकार का उत्पात दिखलाई पड़े तो सात महीनों तक महाराष्ट्र के महान् योद्धाओं को पीड़ा होती है ।।68।। वासुदेवे यद्युत्पातस्तस्योपकरणेषु च। चक्रारूढा: प्रजा ज्ञेयाश्चतुर्मासान् वधो नृपे ॥6॥ वासुदेव की प्रतिमा उसके उपकरणों में किसी भी प्रकार का उत्पात दिखलाई पड़े तो प्रजा चक्रारूढ़-षड्यन्त्र में तल्लीन रहती है और चार महीनों में राजा का वध होता है ।।69॥ प्रद्युम्ने वाऽथ उत्पातो गणिकानां भयावहः । 'कुशोलानां च द्रष्टव्यं भयं चेद्वाऽष्टमासिकम् ॥70॥ प्रद्य म्न की मूत्ति में किसी प्रकार का उत्पात दिखलाई पड़े तो वेश्याओं के लिए अत्यन्त भय कारक होता है और कुशील व्यक्ति के लिए आठ महीनों तक भय बना रहता है 1700 1. विशालायां मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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