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________________ प्रस्तावना 31 मेष में गुरु अस्त हो तो थोड़ी वर्षा, बिहार, बंगाल और आसाम में सुभिक्ष, राजस्थान और पंजाब में दुष्काल; वृष में अस्त हो तो दुभिक्ष, दक्षिण भारत में अच्छी फसल और उत्तर भारत में खण्डवृष्टि; मिथुन में अस्त हो तो घृत, तैल, लवण आदि पदार्थ महंगे महामारी का प्रकोप; कर्क में अस्त हो तो सुभिक्ष, कुशल, कल्याण और समृद्धि; सिंह में अस्त हो तो युद्ध, संघर्ष, राजनीतिक उलट-फेर और धन का नाश; कन्या में अस्त हो तो क्षेत्र, सुभिक्ष, आरोग्य और उत्तम फसल; तुला में अस्त हो तो पीड़ा, द्विजों को विशेष कष्ट, धान्य महँगा; वृश्चिक में अस्त हो तो धनहानि और शस्त्रभय; धनु राशि में अस्त हो तो भय, आतंक, नाना प्रकार के रोग और साधारण फसल; मकर में अस्त हो तो उड़द, तिल, मूंग आदि धान्य महँगे, कुम्भ में अस्त हो तो प्रजा को कष्ट एवं मीन राशि में गुरु अस्त हो तो सुभिक्ष, अच्छी वर्षा, धान्य भाव सस्ता और अनेक प्रकार की समृद्धि होती है। गुरु का क्रूर ग्रहों के साथ अस्त या उदय होना अशुभ है । शुभ ग्रहों के साथ अस्त या उदय होने से शुभ-फल प्राप्त होता है। बुध का क्रूर नक्षत्रों में अस्त होना तथा क्रूर ग्रहों के साथ अस्त होना अशुभ कहा गया है । मंगल का शनि क्षेत्र की राशियों में अस्त होना अशुभसूचक है । जब मंगल अपनी राशि के दीप्तांश में अस्त या उदय को प्राप्त करता है तो शुभफल प्राप्त होता है। ग्रहों के अस्तोदय के समय समान मार्गी और वक्री का भी विचार करना चाहिए। इस निमित्तज्ञान में समस्त ग्रहों के चार प्रकरण गभित हैं । ग्रहों की विभिन्न जातियों के अनुसार शुभाशुभ फल का निरूपण भी इसी निमित्तज्ञान के अन्तर्गत किया गया है । शनि का क्रूर नक्षत्र पर वक्री होना और मृदुल नक्षत्र पर उदय हो जाना अशुभ है। कोई भी ग्रह अपनी स्वाभाविक गति से चलते समय यकायक वक्री हो जाय तो अशुभ फल होता है । लक्षणनिमित्त-स्वस्तिक, कलश, शंख, चक्र आदि चिह्नों के द्वारा एवं हस्त, मस्तक और पदतल की रेखाओं द्वारा शुभाशुभ का निरूपण करना लक्षणनिमित्त है। करलक्षण में बताया गया है कि मनुष्य लाभ-हानि, सुख-दुःख, जीवनमरण, जय-पराजय एवं स्वास्थ्य-अस्वास्थ्य रेखाओं के बल से प्राप्त करता है। पुरुषों के लक्षण दाहिने हाथ से और स्त्रियों के बायें हाथ की रेखाओं से अवगत करने चाहिए । यदि प्रदेशिनी और मध्यमा अंगुलियों का अन्तर सघन हो-वे एकदूसरे से मिली हों और मिलने से उनके बीच में कोई अन्तर न रहे, तो बचपन में सुख होता है। यदि मध्यमा और अनामिका के बीच सघन अन्तर हो तो जवानी में सुख होता है । लम्बी अँगुलियाँ दीर्घजीवियों की, सीधी अंगुलियाँ सुन्दरों की, पतली बुद्धिमानों की और चपटी दूसरों की सेवा करने वालों की होती हैं । मोटी अंगुलियों वाले निर्धन और बाहर की ओर झुकी अंगुलियों वाले आत्मघाती होते
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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