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________________ 226 भद्रबाहुसंहिता जनपद के लिए व्याधि और भय समझना चाहिए ॥18॥ रक्ते 'पुनभयं विन्द्यात् नीले श्रेष्ठिभयं तथा। अन्येष्वेषु विचित्रेषु वृक्षेषु तु भयं विदुः ॥19॥ यदि लाल रंग का रस निकले तो पुत्र को भय, नील रंग का रस निकले तो सेठों को भय, और अन्य विचित्र प्रकार का रस निकले तो जनपद को भय होता है ॥19॥ विस्वरं रवमानस्तु चैत्यवृक्षो यदा पतेत् । 'सततं भयमाख्याति देशजं पञ्चमासिकम् ॥20॥ यदि चैत्य वक्ष-चैत्यालय के समक्ष स्थित वृक्ष अथवा गलर का वृक्ष विकृत आवाज करता हुआ गिरे तो देश-निवासियों को पंचमासिक-पांच महीनों के लिए भय होता है ।।20। नानावस्त्र: समाच्छन्ना दश्यन्ते चैव यद् द्रमाः । राष्ट्रजं तद्भय विन्द्याद् विशेषेण तदा विषे ॥21॥ यदि नाना प्रकार के वस्त्रों से युक्त वृक्ष दिखलाई पड़ें तो राष्ट्र के निवासियों को भय होता है तथा विशेष रूप से देश के लिए भय समझना चाहिए ।।2।। शुक्लवस्त्रो द्विजान् हन्ति रक्तः क्षत्रं तदाश्रयम्। पीतवस्त्रो यदा व्याधि तदा च वैश्यघातकः ॥22॥ यदि वृक्ष श्वेत वस्त्र से युक्त दिखलाई पड़े तो ब्राह्मणों का विनाश, रक्त वस्त्र से युक्त दिखलाई पड़े तो क्षत्रियों का विनाश और पीत वस्त्र से युक्त दिखलाई पड़े तो व्याधि उत्पन्न होती है और वैश्यों के लिए विनाशक है ।।22॥ 'नीलवस्त्रस्तथा श्रेणीन् कपिलम्र्लेच्छमण्डलम् । धूम्रनिहन्ति श्वपचान् चाण्डालानप्यसंशयम् ॥23॥ नील वर्ण के वस्त्र से युक्त वृक्ष दिखलाई पड़े तो अश्रेणी-शूद्रादि निम्न वर्ग के व्यक्तियों का विनाश, कपिल वर्ण के वस्त्र से युक्त दिखलाई पड़े तो म्लेच्छयवनादिका विनाश, धम्र वर्ण के वस्त्र से युक्त दिखलाई पड़े तो श्वपच-चाण्डाल डोमादि का विनाश होता है ।।23। 1. शत्रु मु. । 2. वक्षे मु. 3. विदुः मु० । 4. यत: मु० । 5. ततो भयं समाख्याति मु० । 6. यदा दृश्यन्ते वै दमाः मुः। 7. नीलवस्वो निहन्त्याशु शूद्रांश्च प्रभृतिन्नरान् । पशुपक्षिभयं चिवं विवर्णः स्त्रीभयंकर: मु ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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