SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 318
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 220 भद्रबाहुसंहिता कान और शरीर को यात्रा करने वाले के सामने हिलावे तो यात्रा में धन हरण, कष्ट एवं रोग आदि होते हैं। यदि यात्रा करने वाला व्यक्ति किसी कुत्ता को जल, वृक्ष की लकड़ी, अग्नि, भस्म, केश, हड्डी, काष्ठ, सींग, श्मशान, भूसा, अंगार, शूल, पाषाण, विष्ठा, चमड़ा आदि पर मूत्र करते हुए देखे तो यात्रा में नाना प्रकार के कष्ट होते हैं । __ शृगाल विचार-जिस दिशा में यात्रा की जा रही हो, उसी दिशा में शृगाल या शृगाली का शब्द सुनाई पड़े तो यात्रा में सफलता प्राप्त होती है । यदि पूर्व दिशा की यात्रा करने वाले व्यक्ति के समक्ष शृगाल या शृगाली आ जाय और वह शब्द भी कर रही हो तो यात्रा करने वाले को महान् संकट की सूचना देती है। यदि सूर्य सम्मुख देखती हुई श्रृगाली बायीं ओर बोले तो भय, दाहिनी ओर बोले तो कार्य हानि फल होता है। दक्षिण दिशा की यात्रा करने वाले व्यक्ति के दायीं ओर श्रृगाली शब्द करे तो यात्रा में सफलता की सूचना देती है। इसी दिशा के यात्री के आगे सूर्य की ओर मुंह कर शृगाली बोले तो मृत्यु की प्राप्ति होती है । पश्चिम दिशा को गमन करने वाले के सम्मुख शृगाली बोले तो किंचित् हानि और सूर्य की ओर मुंह करके बोले तो अत्यन्त संकट की सूचना देती है। यदि पश्चिम दिशा के यात्री के पीठ के पीछे शृगाली शब्द करती हुई चले तो अर्थनाश, बायीं ओर शब्द करे तो अर्थागम होता है। उत्तर दिशा को गमन करने वाले व्यक्ति के पीठ पीछे शृगाली सूर्य की ओर मुंह कर बोले तो यात्रा में अर्थहानि और मरण होता है । यदि यात्रा-काल में शृगाली दाहिनी ओर से निकलकर बाई ओर चली जाय और वहीं पर शब्द करे तो यात्रा में सफलता की सूचना समझनी चाहिए। शृगाली शब्द की कर्कशता और मधुरता के अनुसार फल में भी हीनाधिकता हो जाती है। ___ यात्रा में छींक विचार-छींक होने पर सभी प्रकार के कार्यों को बन्द कर देना चाहिए। गमन काल में छींक होने से प्राणों की हानि होती है। सामने छींक होने पर कार्य का नाश, दाहिने नेत्र के पास छींक हो तो कार्य का निषेध, दाहिने कान के पास छींक हो तो धन का क्षय, दक्षिण कान के पृष्ठ भाग में छींक हो तो शत्रुओं की वृद्धि, बायें कान के पास छींक हो तो जय, बायें कान के पृष्ठ भाग की ओर छींक हो तो भोगों की प्राप्ति, बायें नेत्र के आगे छींक हो तो धन लाभ होता है। प्रयाण काल में सम्मुख की छींक अत्यन्त अशुभकारक है और दाहिनी छींक धन नाश करने वाली है। अपनी छींक अत्यन्त अशुभकारक होती है । ऊंचे स्थान की छींक मृत्युमय है, पीठ पीछे की छींक भी शुभ होती है। छींक का विचार 'डाक' ने इस प्रकार किया है
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy