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________________ 208 भद्रबाहुसंहिता कोण में, तृतीय अर्धमास में दक्षिण दिशा में, चतुर्थ अर्थमास में ईशानकोण में, पश्चम अर्धमास में पश्चिम दिशा में, पप्ठ अर्धमास में आग्नेयी दिशा में, सप्तम अर्धमास में उत्तर दिशा में और अष्टम अर्धमास में नैऋत्यकोग में राहु का वास रहता है। यात्रा के लिए राहु आदि का विचार जयाय दक्षिणो राहु योगिनी वामतः स्थिता। पृष्ठतो द्वयमप्येतच्चन्द्रमाः सम्मुख: पुनः ।। अर्थ-दिशाशूल का बायीं ओर रहना, राहु का दाहिनी ओर या पीछे की ओर रहना, योगिनी का बायीं ओर या पीछे की ओर रहना एवं चन्द्रमा का सम्मुख रहना यात्रा में शुभ होता है। द्वादश महीनों में पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर के क्रम से प्रतिपदा से पूर्णिमा तक क्रम से सौख्य, क्लेश, भीति, अर्थागम, शून्य, निःस्वत्व, मित्रघात, द्रव्य-क्लेश, दुःख, इप्टाप्ति, अर्थलाभ, लाभ, सौख्य, मंगल, वित्त लाभ, लाभ, द्रव्यप्राप्ति, धन, सौख्य, भीति, लाभ, मृत्यु, अगाम, लाभ, कष्ट, द्रव्यलाभ, कष्ट, सौख्य, क्लेश, सुख, सौख्य, लाभ, कार्य सिद्धि, कष्ट, क्लेश, अर्थ, धन-लाभ, मृत्यु, लाभ, द्रव्यलाभ, शून्य, शून्य, सौख्य, मृत्यु, अत्यन्त कष्ट फल होता है। 13, 14 और 15 तिथि का फल 3,4 और 5 तिथि के फल समान जानना चाहिए। तिथि चक्र प्रकार दक्षिण | बम | उत्तर | क्लेश | भीतिः अथांग | निःस्व मित्रपाः इराप्तिः सद मथ: लाभ: سامانه سماع ایماء تمام: اده اب اسمع لعاداء امامداداشی | سماع اعرا راهنما ماهادت امام عام اداء مهامات اس ام اس اسم لعام اعدام های امام به اسمه امان امامت امام اس اسماها काभः اياها اتهام اسد اسماعي बाग: FREP - PF लामः | धनम् । सौर | मृत्युः अांग दम्यला MFICIIMa कटम اسی امام و اماممات اسم ام العام وأمام اقض सायम लाभ: चयः लाभ: बका। त्यम् । सांस्य पत्थर
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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