SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 300
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 202 भद्रबाहुसंहिता रक्त की बूंदें दिखलाई पड़ें उस राजा की पराजय होती है ।।162।। नरा यस्य विपद्यन्ते प्रयाणे वारणैः पथि। कपालं गृह्य धावन्ति दोनास्तस्य पराजयः ।।163॥ जिस राजा के प्रयाण-काल में मार्ग में उसके हाथियों के द्वारा मनुष्य पीड़ित हों और वे मनुष्य अपना सिर पकड़कर दीन होकर भागें तो उस राजा की पराजय होती है ।। 163।। यदा धुनन्ति सोदन्ति निपतन्ति किरन्ति च । खादमानास्तु खिद्यन्ते तदाऽऽख्याति पराजयम् ॥164॥ जिसके प्रयाण काल में घोड़े पूंछ का संचालन अधिक करते हों, खिन्न होते हों, गिरते हों, दुःखी होते हों, अधिक लीद करते हों और घास खाते समय खिन्न होते हों तो वे उसकी पराजय की सूचना देते हैं ।। 1641 हेषन्त्यभोक्षणमश्वास्तु विलिखन्ति खुरैर्धराम्। नदन्ति च यदा नागास्तदा विन्द्याद् ध्रुवं जयम् ॥165॥ घोड़े बार-बार हींसते हों, खुरों से जमीन को खोदते हों और हाथी प्रसन्नता की चिंघाड़ करते हों तो उसकी निश्चित जय समझनी चाहिए ।।165।। पुष्पाणि पोतरक्तानि शुक्लानि च यदा गजा: । अभ्यन्तराग्रदन्तेषु दर्शयन्ति यदा जयम् ॥166॥ यदि हाथी पीत, रक्त और श्वेत रंग के पुप्पों को भीतरी दांतों के अग्रभाग में दिखलाते हुए मालूम हों तो जय समझना चाहिए ।।166।। __यदा मुंचन्ति शुण्डाभिर्नागा नादं पुन: पुन: । परसैन्योपघाताय तदा विन्द्याद् ध्र वम्जयम् ॥167॥ जब हाथी सूंड से बार-बार नाद करते हों तो परसेना-शत्रु सेना के विनाश के लिए प्रयाण करने वाले राजा की जय होती है ।।1671 पाद: पादान् विकर्षन्ति तलैर्वा विलिन्ति च । गजास्तु यस्य सेनायां निरुध्यन्ते ध्र व परः ॥168॥ जिस सेना के हाथी पैरों द्वारा पैरों को खींचें अथवा तल के द्वारा धरती को खोदें तो शत्रु के द्वारा सेना का निरोध होता है ।।168।। 1. विरुध्यन्ते मु०।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy