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________________ 170 भद्रबाहुसंहिता ईशान और पूर्व दिशा में गर्भधारण करते हैं। जिस समय मेघ गर्भधारण करते हैं उस समय दिशाएं शान्त हो जाती हैं, पक्षियों का कलरव सुनाई पड़ने लगता है । अगहन मास में जिस तिथि को मेघ सन्ध्या की अरुणिमा से अनुरक्त और मंडलाकार होते हैं, उसी तिथि को उनकी गर्भ धारण की क्रिया समझनी चाहिए। अगहन मास में जिस तिथि को प्रबल वायु चले, लाल-लाल बादल आच्छादित हों, चन्द्र और सूर्य की किरणें तुषार के समान कलुषित और शीतल हों तो छिन्न-भिन्न गर्भ समझना चाहिए। गर्भधारण के उपर्युक्त चारों मासों के अतिरिक्त ज्येष्ठ मास भी माना गया है । ज्येष्ठ में शुक्ल पक्ष की अष्टमी से चार दिनों तक गर्भ धारण की क्रिया होती है। यदि ये चारों दिन एक समान हों तो सुखदायी होते हैं, तथा गर्भधारण क्रिया बहुत उत्तम होती है। यदि इन दिनों में एक दिन जल बरसे, एक दिन पवन चले, एक दिन तेज धूप पड़े और एक दिन आंधी चले तो निश्चयतः गर्भ शुभ नहीं होता। ज्येष्ठमास का गर्भ मात्र 89 दिनों में बरसता है । अगहन का गर्भ दिन में वर्षा करता है; किन्तु वास्तविक गर्भ अगहन, पौष और माघ का ही होता है। अगहन के गर्भ द्वारा आषाढ़ में वर्षा, पौष के गर्भ से श्रावण में, माघ के गर्भ से भाद्रपद और फाल्गुन के गर्भ से आश्विन में जलवृष्टि होती है। फाल्गुन में तीक्ष्ण पवन चलने से, स्निग्ध बादलों के एकत्र होने से, सूर्य के अग्नि समान पिंगल और ताम्रवर्ण होने से गर्भ क्षीण होता है । चैत्र में सभी गर्भ पवन, मेघ, वर्षा और परिवेष युक्त होने से शुभ होते हैं। बैशाख में मेघ, वायु, जल और बिजली की चमक एवं कड़कड़ाहट के होने से गर्भ की पुष्टि होती है। उल्का, वज्र, धूलि, दिग्दाह, भूकम्प, गन्धर्वनगर, कीलक, केतु, ग्रहयुद्ध, निर्घात, परिघ, इन्द्रधनुष, राहुदर्शन, रुधिरादिका वर्षण आदि के होने से गर्भ का नाश होता है। पूर्वाभाद्रपदा, उत्तराभाद्रपदा, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा और रोहिणी नक्षत्र में धारण किया गया गर्भ पुष्ट होता है। इन पांच नक्षत्रों में गर्भ धारण करना शुभ माना जाता है तथा मेघ प्रायः इन्हीं नक्षत्रों में गर्भ धारण करते भी हैं । अगहन महीने में जब ये नक्षत्र हों, उन दिनों गर्भ काल का निरीक्षण करना चाहिए। पौष, माघ और फाल्गुन में भी इन्हीं नक्षत्रों का मेघगर्भ शुभ होता है, किन्तु शतभिषा, आश्लेषा, आर्द्रा और स्वाती नक्षत्र में भी गर्भ धारण की क्रिया होती है। अगहन से बैशाख मास तक छ: महीनों में गर्भ धारण करने से 8, 6, 16, 24, 20 और 3 दिन तक निरन्तर वर्षा होती है। क्रूरग्रहयुक्त होने पर समस्त गर्भ में ओले, अशनि और मछली की वर्षा होती है। यदि गर्भ समय में अकारण ही घोर वर्षा हो तो गर्भ का स्खलन हो जाता है । गर्भ पांच प्रकार के निमित्तों से पुष्ट होता है। जो पुष्टगर्भ है, वह सौ योजन
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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