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________________ द्वादशोऽध्यायः 167 नक्षत्रेषु तिथौ चापि मुहर्ते करणे दिशि । यत्र यत्र समुत्पन्नाः 'गर्भाः सर्वत्र पूजिताः ॥26॥ जिस-जिस नक्षत्र, तिथि, दिशा, मुहूर्त, करण में स्निग्ध मेघ गर्भ धारण करते हैं, वे उस-उस प्रकार के मेघ पूज्य होते हैं-शुभ होते हैं ॥26॥ सुसंस्थानाः सुवर्णाश्च सुवेषाः स्वभ्रजा घनाः । सुबिन्दव: स्थिता गर्भाः सर्वे सर्वत्र पूजिताः ॥27॥ सुन्दर आकार, सुन्दर वर्ण, सुन्दर वेष, सुन्दर बादलों से उत्पन्न, सुन्दर बिन्दुओं से युक्त मेघगर्भ सर्वत्र पूजित होते हैं-शुभ होते हैं ।।27। कृष्णा रूक्षाः सुखण्डाश्च विद्रवन्त: पुनः पुनः । विस्वरा रूक्षशब्दाश्च गर्भाः सर्वत्र निन्दिताः ॥28॥ कृष्ण, रूक्ष, खण्डित तथा विकृत-आकार वाले, भयंकर और रूक्ष शब्द करने वाले मेघगर्भ सर्वत्र निन्दित हैं ।।28।। अन्धकारसमुत्पन्ना गर्भास्ते तु न पूजिताः। चित्रा: स्रवन्ति सर्वाणि गर्भाः सर्वत्र निन्दिताः ॥29॥ अन्धकार में समुत्पन्न गर्भ-कृष्णपक्ष में उत्पन्न गर्भ पूज्य नहीं-शुभ नहीं होते हैं । चित्रा नक्षत्र में उत्पन्न गर्भ भी निन्दित हैं ॥29॥ मन्दवृष्टिमनावृष्टि भयं राजपराजयम्। दुभिक्षं मरणं रोगं गर्भा: कुर्वन्ति तादृशम् ॥30॥ उक्त प्रकार का मेघगर्भ मन्दवृष्टि, अनावृष्टि, राजा की पराजय का भय, दुभिक्ष, मरण, रोग इत्यादि बातों को करता है ॥30॥ मार्गशीर्षे तु गर्भास्तु ज्येष्ठामूलं समादिशेत् । पौषमासस्य गर्भास्तु विन्द्यादाषाढिका बुधाः ॥31॥ माघजात् श्रवणे विन्द्यात् प्रोष्ठपदे च फाल्गुनात् । चैत्रामश्वयुजे विन्द्याद्गर्भ जलविसर्जनम् ॥32॥ मार्गशीर्ष का गर्भ ज्येष्ठा या मूल में और पौष का गर्भ पूर्वाषाढ़ा में, माघ में उत्पन्न गर्भ श्रवण में, फाल्गुन में उत्पन्न धनिष्ठा नक्षत्र में, चैत्र में उत्पन्न गर्भ अश्विनी नक्षत्र में जल-वृष्टि करता है ।।31-32।। 1. स्निग्धाः मु०। 2. इस श्लोक के पहले B. C. D. में यह श्लोक मुद्रित हैअत्युष्णाश्चातिशीताश्च बहूदका विकताश्च ये। चित्रा स्रवन्ति सर्वाणि गर्भाः सर्वत्र निन्दिताः।। मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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