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________________ 192 भद्रबाहुसंहिता वसुधा वारि वा यस्य यानेषु प्रतिहीयते। वज्रादयो निपतन्ते ससैन्यो वध्यते नृपः ।।101॥ यदि प्रयाण काल में पृथ्वी जल से युक्त हो अथवा यान – रथ, घोड़ा, हाथी आदि की सवारी में हीनता हो—सवारियों के चलने में किसी तरह की कठिनाई आ रही हो अथवा बिजली आदि गिरे तो राजा का सेना सहित विनाश होता है।।1011 सर्वेषां शकुनानां च प्रशस्तानां स्वरः शुभः। 'पूर्ण विजयामाख्याति प्रशस्तानां च दर्शनम् ॥102॥ सभी शुभ शकुनों में स्वर शुभ शकुन होता है। श्रेष्ठ शुभ वस्तुओं का दर्शन पूर्ण विजय देता है । ' 02॥ फलं वा यदि वा पुष्पं ददते यस्य पादपः । अकालजं प्रयातस्य न सा यात्रा विधीयते॥103॥ प्रयाण काल में जिस नृप को असमय में ही वृक्ष फल या पुष्य दें, तो उस समय यात्रा नहीं करनी चाहिए ।।103॥ येषां निदर्शने किंचित् विपरीतं मुहुर्मुहुः। स्थालिका पिठरो वाऽपि तस्य तद्वधमोहते ॥1040 प्रयाण काल में जिन वस्तुओं के दर्शन में कुछ विपरीतता दिखलाई पड़े अथवा बटलोई, मथानी आदि वस्तुओं के दर्शन हों तो उस राजा की सेना का वध होता है ।10411 अचिरेणैवाकालेन तद् विनाशाय कल्पते। निवर्तयन्ति ये केचित् प्रयाता बहुशो नराः॥105॥ यदि गमन करने वाले अधिक व्यक्ति लौट कर वापस जाने लगें तो शीघ्र ही असमय में सेना का विध्वंस होता है ।।105॥ यात्रामुपस्थितोपकरणं तेषां च स्याद् ध्र वं वधः। पक्वानां विरसं दग्धं 'सपिभाण्डो विभिद्यते ॥106॥ तस्य व्याधिभयं चापि मरणं वा पराजयम्। रथानां प्रहरणानांच ध्वजानामथ यो नृपः ।।107॥ 1. तूर्ण मु० । 2. निवसनं मु० । 3. आचाराद्यं भवेन्नणां मु० । 4. दग्धभमिषु मीहते मु० । 5. रथप्रहरणं चैव ध्वजध्यानं यो नपः मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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