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________________ 188 भद्रबाहुसंहिता वाला आदि व्यक्ति यदि मिल जायें तो यात्रा को निन्दित समझना चाहिए 175॥ नग्नं प्रव्रजितं दृष्ट्वा मंगलं मंगलाथिनः । कुर्यादमंगलं यस्तु तस्य सोऽपि न मंगलम् ॥76॥ नग्न, दीक्षित मुनि आदि साधुओं का दर्शन मंगलार्थी के लिए मंगलमय होता है। जिसको साधु-मुनि का दर्शन अमंगल रूप होता है, उसके लिए वह भी मंगल रूप नहीं है ।।7611 पीडितोऽपचयं कुर्यादाकु ष्टो वधबन्धनम् । ताडितो मरणं दद्याद त्रासितो रुदितं तथा ॥77॥ यदि प्रयाण काल में पीड़ित व्यक्ति दिखलाई पड़े तो हानि, चीखता हुआ दिखलाई पड़े तो वध-बन्धन, ताड़ित दिखलाई पड़े तो मरण और रुदित दिखलाई पड़े तो त्रासित होना पड़ता है ।।771 पूजितः सानुरागेण लाभं राज्ञः समादिशेत् । तस्मात्तु मंगलं कुर्यात् प्रशस्तं साधुदर्शनम् ॥78॥ अनुराग पूर्वक पूजित व्यक्ति दिखलाई पड़े तो राजा को लाभ होता है, अतएव आनन्द मंगल करना चाहिए । यात्रा काल में साधु का दर्शन शुभ होता है।।78॥ दैवतं तु यदा बाह्य राजा सत्कृत्य स्वं पुरम् । प्रवेशयति तद्राजा बाह्यस्तु लभते पुरम् ॥79॥ जब राजा बाह्य देवता के मन्दिर की अर्चना कर अपने नगर में प्रवेश करता है तो बाह्य से ही नगर को प्राप्त कर लेता है ॥79।। वैजयन्त्यो विवर्णास्तु 'बाह्य राज्ञो यदाग्रतः। पराजयं समाख्याति तस्मात् तां परिवर्जयेत् ॥8॥ यदि राजा के आगे बहिर्भाग की पताका विकृत रंग बदरंगी दिखलाई पड़े तो राजा की पराजय होती है, अतः उसका त्याग कर देना चाहिए ॥80॥ सर्वार्थेषु प्रमत्तश्च यो भवेत् पृथिवीपतिः । हितं न शृण्वतश्चापि तस्य विन्द्यात् पराजयम् ॥81॥ जो राजा समस्त कार्यों में प्रमाद करता है और हितकारी वचनों को नहीं सुनता है, उसकी पराजय होती है ।।81।। 1. दृष्टा मु० । 2. सोत्तरांगेन मु० । 3. श्च मु० । 4. रानो बायो यदा प्रहः मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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