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________________ 184 भद्रबाहुसंहिता स्निग्धोऽल्पघोशे धूमोऽथ गौरवर्णो महानजुः । प्रदक्षिणोऽप्यवच्छिन्न: सेनानी विजयावहः ॥51॥ यदि गमन काल में स्निग्धा, मन्द ध्वनि, धूम्रयुक्ता, गौरवर्णा, सीधी बड़ी शिखावाली अग्नि दाहिनी ओर से चारों ओर को प्रदक्षिणा करती हुई भी अविच्छिन्ना दिखलाई पड़े तो सेनानी की विजय होती है ।। 51॥ कृष्णो वा विकृतो रूक्षो वामावर्तो हुताशनः । होनाच्चिधूमबहलः स प्रस्थाने भयावहः ॥52॥ यदि गमन समय में कृष्ण शिखावाली, रूक्ष विकृति-विकार वाली, अधिक धूम वाली अग्नि सेना की बायीं ओर दिखलाई पड़े तो भयप्रद होती है ॥52॥ सेनाग्रे हूयमानस्य यदि पीता शिखा भवेत्। श्यामाऽथवा यदा रक्ता पराजयति सा चमू:0530 यदि गमनकाल में सेना के आगे पीतवर्ण की अग्नि की ज्वाला धू-धू करती हुई दिखलाई पड़े, रक्त वर्ण की अथवा कृष्ण वर्ण की शिखा उपर्युक्त प्रकार की ही दिखलाई पड़े तो सेना की पराजय होती है ।।531 यदि होतुः पथे शीघ्र 'ज्वलत्स्फुल्लिगमग्रतः। पार्श्वत: पृष्ठतो वापि तदेवं फलमादिशेत् ॥54॥ यदि गमन समय मार्ग में होता अर्थात् हवन करने वाले के आगे अग्निकण शीघ्रता से उड़ते हुए दिखलाई पड़ें, अथवा पीछे या बगल की ओर अग्निकण दिखलाई पड़ें तो भी सेना की पराजय होती है।।541 यदि धूमाभिभूता स्याद् वातो भस्म निपातयेत् । आहूतः कम्पते वाऽऽज्यं न सा यात्रा विधीयते॥55॥ यदि अग्नि धूमयुक्त हो और वायु के द्वारा इसकी भस्म राख इधर-उधर उड़ रही हो अथवा अग्नि में आहुति रूप दिया गया घी कम्पित हो रहा हो तो यात्रा नहीं करनी चाहिए ॥55॥ राजा परिजनो वाऽपि कुप्यते मन्त्रशासने। होतुराज्यविलोपे च तस्यैव वधमादिशेत् ॥56॥ राजा या परिजन मन्त्री के अनुशासन से क्रोधित हों और हवन करनेवाले होता का घी नष्ट हो जाये तो उसकी वध की सूचना समझनी चाहिए ।।56॥ 1. जुह वतः शृंगमग्रत: मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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