SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 146 भद्रबाहुसंहिता रक्तं गन्धर्वनगरं क्षत्रियाणां भयावहम् । पीतं वैश्यान् निहन्त्याशु कृष्णं शूद्रान् सितं द्विजान् ॥27॥ लाल रंग का गन्धर्वनगर क्षत्रियों के लिए भयोत्पादक, पीतवर्ण का गन्धर्वनगर वैश्यों को, कृष्णवर्ण का गन्धर्वनगर शूद्रों को और श्वेत वर्ण का गन्धर्वनगर ब्राह्मणों को भयोत्पादक होने के साथ शीघ्र ही विनाश करता है ।।27। अरण्यानि तु सर्वाणि गन्धर्वनगरं यदा। आरण्यं जायते सर्व "तद्राष्ट्र नात्र संशयः ॥28॥ यदि अरण्य में गन्धर्वनगर दिखलाई पड़े तो शीघ्र ही राष्ट्र उजड़कर अरण्य-जंगल बन जाता है, इसमें सन्देह नहीं है ।।28।। अम्बरेषूदकं विन्द्याद् भयं प्रहरणेषु च। अग्निजेषुपकरणेषु भयमग्ने: समादिशेत् ॥29॥ यदि स्वच्छ आकाश में गन्धर्वनगर दिखलाई पड़े तो जल की वष्टि, अस्त्रों के बीच गन्धर्वनगर दिखलाई पड़े तो भय और अग्नि सम्बन्धी उपकरणों के मध्य गन्धर्वनगर दिखलाई पड़े तो अग्निभय होता है ॥29॥ शुभाशुभं विजानीयाच्चातुर्वयं यथाक्रमम्। दिक्षु सर्वासु नियतं भद्रबाहुवचो यथा ॥30॥ ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण को क्रमानुसार पूर्वादि सभी दिशाओं के गन्धर्वनगर के अनुसार भद्रबाहु स्वामी के वचनों से शुभाशुभत्व जानना चाहिए ॥30॥ उल्कावत् साधनं दिक्षु जानीयात् पूर्वकोतितम् । गन्धर्वनगरं सवं यथावदनुपूर्वशः ॥31॥ उल्का के समान पूर्व बताये गये निमित्तों के अनुसार गन्धर्व नगरों के फलाफल को अवगत कर लेना चाहिए ॥31॥ इति भद्रबाहुविरचिते निखिलनिमित्तीयाधिकारद्वादशांगाद्-उद्धृत निमित्तशास्त्र गन्धर्वनगरं एकादशमं लक्षणम् । विवेचन-वराहमिहिर ने उत्तर, पूर्व, दक्षिण और पश्रिम दिशा के गन्धर्वनगर का फलादेश क्रमशः पुरोहित, राजा, सेनापति और युवराज को विघ्नकारक बताया है। श्वेत, रक्त, पीत और कृष्ण वर्ण के गन्धर्वनगर को ब्राह्मण, 1. राष्ट्र मु०। 2. अचिन्नात्र संशयः । 3. सर्वगन्धर्वनगरं ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy