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________________ एकादशोऽध्यायः 143 सर्वास्वपि यदा दिक्षु गन्धर्वनगरं भवेत् । सर्वे वर्णा विरुध्यन्ते सर्वदिक्षु परस्परम् ॥8॥ यदि सभी दिशाओं में गन्धर्वनगर हो तो सभी दिशाओं में सभी वर्ण वाले परस्पर विरोध करते हैं-कलह करते हैं ।।8।। कपिलं सस्यघाताय मांजिष्ठं हरिणं गवाम् । अव्यक्तवर्णं कुरुते बलक्षोभं न संशयः ॥५॥ कपिल वर्ण का गन्धर्वनगर धान्य द्योतक, मजिष्ठ वर्ण का गन्धर्वनगर हरिण, गौ आदि पशुओं का घातक और अव्यक्त वर्ण का गन्धर्वनगर सेना में क्षोभ उत्पन्न करता है।।9।। गन्धर्वनगरं स्निग्धं सप्राकारं सतोरणम् । __ शान्तदिशि समाश्रित्य राज्ञस्तद् विजयं वदेत् ॥10॥ यदि स्निग्ध, परकोटा और तोरण सहित गन्धर्वनगर नीरव दिशा में दिखलाई पड़े तो राजा के लिए विजय देने वाला होता है ।।10॥ गन्धर्वनगरं व्योम्नि परुषं यदि दश्यते। वाताशनिनिपातांस्तु तत् करोति सुदारुणम् ॥11॥ यदि आकाश में परुष-कठोर गन्धर्वनगर दिखलाई पड़े तो वायु के चलने और बिजली के गिरने का महान भय होता है ॥11॥ इन्द्रायुधसवर्णं च धूमाग्निसदृशं च यत् । तदाग्निभयमाख्याति गन्धर्वनगरं नृणाम ॥12॥ यदि इन्द्रधनुष के समान वर्णमाला और धमयुक्त अग्नि के समान गन्धर्व नगर दिखलाई पड़े तो मनुष्यों को अग्नि-भय होता है ॥12॥ खण्डं विशीर्ण "सच्छिद्रं गन्धर्वनगरं यदा। तदा तस्करसंघानां भयं सञ्जायते सदा ॥13॥ यदि खण्डित, विशृंखलित और छिद्रयुक्त गन्धर्वनगर दिखलाई पड़े तो पृथ्वी पर चोरों का भय होता है ॥13॥ यदा गन्धर्वनगरं सप्राकारं सतोरणम् । दृश्यते तस्करान् हन्ति तदा चानूपवासिनः ॥14॥ 1. तथा मु० । 2. समन्तत: मु० । 3. करम् मु० । 4. छिद्र वा मु० । 5. स भयो जाय ते भुवि मु० । 6. यवान्तवासिनः मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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