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________________ 134 भद्रबाहुसंहिता से शान्ति प्राप्त करती हैं। धनिष्ठा नक्षत्र में जल की वर्षा होने पर पानी श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कात्तिक, माघ और वैशाख में खूब बरसता है। फसल कहीं-कहीं अतिवृष्टि के कारण नष्ट भी हो जाती है । आर्थिक दृष्टि से उक्त प्रकार की वर्षा अच्छी होती है । देश के वैभव का भी विकास होता है। यदि गर्जन-तर्जन के साथ उक्त नक्षत्र में वर्षा हो तो उपर्युक्त फल का चतुर्थांश फल कम समझना चाहिए । व्यापार के लिए भी उक्त प्रकार की वर्षा मध्यम है । यद्यपि विदेशों से व्यापारिक सम्बन्ध बढ़ता है तथा प्रत्येक वस्तु के व्यापार में लाभ होता है । धनिष्ठा नक्षत्र के आरम्भ में ही जल की वर्षा हो तो फसल उत्तम और अन्तिम तीन घटियों में जल बरसे तो साधारण फल होता है और वर्षा भी मध्यम ही होती है। शतभिषा नक्षत्र में जल की प्रथम वर्षा हो तो बहुत पानी बरसता है। अगहनी फसल मध्यम होती है, पर चैती फसल अच्छी उपजती है । व्यापार में हानि उठानी पड़ती है, जूट और चीनी के व्यापार में साधारण लाभ होता है । पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के आरम्भ की पांच घटियों में जल बरसे तो फसल मध्यम और वर्षा भी मध्यम होती है । माघ मास में वर्षा का अभाव होने से चैती फसल में कमी आती है। यद्यपि चातुर्मास में जल खूब बरसता है, फिर भी फसल में न्यूनता रह जाती है । अन्तिम की घटियों में जल की वर्षा होने से अगहन में पानी की वर्षा होती है, फसल भी अच्छी उत्पन्न होती है। धान की फसल में रोग लग जाते हैं, फिर भी फसल मध्यम हो ही जाती है। यदि उक्त नक्षत्र के मध्य भाग में वर्षा हो तो अधिक जल की वर्षा होती है तथा आवश्यकतानुसार जल बरसने से फसल बहुत उत्तम होती है। व्यापारियों के लिए उक्त प्रकार की वर्षा हानि पहुंचाने वाली होती है । यदि उत्तराभाद्रपद विद्ध पूर्वाभाद्रपद में वर्षा आरम्भ हो तो शासकों के लिए अशुभकारक होती है तथा देश की समृद्धि में भी कमी आती है। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में प्रथम वर्षा हो तो चातुर्मास में अच्छी वर्षा होती है। फसल अधिक वृष्टि के कारण कुछ बिगड़ जाती है। कात्तिक मास में आने वाली फसलों में कमी होती है। चती फसल अच्छी होती है । ज्वार और बाजरा की उत्पत्ति बहुत कम होती है। उत्तराभाद्रपद के प्रथम चरण में वर्षा आरम्भ होकर बन्द हो जाय तो कात्तिक में पानी नहीं बरसता, अवशेष महीनों में वर्षा होती है । फसल भी उत्तम होती है। द्वितीय चरण में वर्षा होकर तृतीय चरण में समाप्त हो तो वर्षा समयानुकूल होती है और फसल भी उत्तम होती है । यदि उत्तराषाढ़ा के तृतीय चरण में वर्षा हो तो चातुर्मास में वर्षा होने के साथ मार्गशीर्ष और माघ मास में भी पर्याप्त वर्षा होती है । चतुर्थ चरण में वर्षा आरम्भ हो तो भाद्रपद मास में अत्यल्प पानी बरसता है । आश्विन मास में साधारण वर्षा होती है। माघ मास में वर्षा होने के कारण गेहूं-चने की फसल बहुत अच्छी
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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