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________________ 130 भद्रबाहुसंहिता एतद व्यासेन कथितं समासाच्छ यतां पुन:। भद्रबाहुवच: श्रुत्वा मतिमानवधारयेत् ॥53॥ यह विस्तार से वर्णन किया है, संक्षेप में पुनः सुनिये । भद्रबाहु के वचनों को सुनकर बुद्धिमानों को उनका अवधारण करना चाहिए ।।53॥ द्वात्रिंशदाढकानि स्युः नक्रमासेषु निदिशेत् । समक्षेत्रे द्विगुणितं तत् त्रिगुणं वाहिकेषु च ॥54॥ नक्रमास-श्रावण मास में 32 आढक प्रमाण वर्षा हो तो समक्षेत्र में दुगुनी और निम्न स्थल-आर्द्र स्थलों में तिगुनी फसल होती है ।। 54॥ उल्कावत् साधनं चात्र वर्षणं च विनिदिशेत् । शुभाऽशुभं तदा वाच्यं सम्यग् ज्ञात्वा यथाविधि ॥55॥ उल्का के समान वर्षण की सिद्धि भी कर लेनी चाहिए तथा सम्यक प्रकार जानकर के शुभाशुभ फल का निरूपण करना चाहिए ।।55॥ इति भद्रबाहके संहितायां महानमित्तशास्त्र सकलमारसमुच्चयवर्षणी नाम दशमोऽध्यायः परिसमाप्तः । विवेचन-वर्षा का विचार यद्यपि पूर्वोक्त अध्यायों में भी हो चुका है, फिर भी आचार्य विशेष महत्ता दिखलाने के लिए पुनः विचार करते हैं। प्रथम वर्षा जिस नक्षत्र में होती है, उसी के अनुसार वर्षा के प्रमाण का विचार किया गया है । आचार्य ऋषिपुत्र ने निम्न प्रकार वर्षा का विचार किया है। __ यदि मार्गशीर्ष महीने में पानी बरसता है तो ज्येष्ठ के महीने में वर्षा का अभाव रहता है । यदि पौष मास में बिजली चमककर पानी बरसे तो आषाढ़ के महीने में अच्छी वर्षा होती है। माघ और फाल्गुन महीनों के शुक्लपक्ष में तीन दिनों तक पानी बरसता रहे तो छठे और नौवें महीने में अवश्य पानी बरसता है। यदि प्रत्येक महीने में आकाश में बादल आच्छादित रहें तो उस प्रदेश में अनेक प्रकार की बीमारियां होती हैं । वर्ष के आरम्भ में यदि कृत्तिका नक्षत्र में पानी बरसे तो अनाज की हानि होती है और उस वर्ष में अतिवृष्टि या अनावृष्टि का भी योग रहता है । रोहिणी नक्षत्र में प्रथम वर्षा होने पर भी देश की हानि होती है तथा असमय में वर्षा होती है, जिससे फसल अच्छी नहीं उत्पन्न होती। अनेक प्रकार की व्याधियां तथा अनाज की महंगाई भी इस नक्षत्र में पानी बरसने से होती है। परस्पर कलह और विसंवाद भी होते हैं । मृगशिर नक्षत्र में प्रथम वर्षा होने से अवश्य सुभिक्ष होता है। फसल भी अच्छी उत्पन्न होती है । यदि सूर्य नक्षत्र 1. समासेन पुन: शृणु। 2. विगुणं व्याधितेषु च मु०। 3. ततो मु० । 4. क्रमम् मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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