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________________ दशमोऽध्यायः 127 सस्यघातं विजानीयाद् व्याधिभिश्चोदकेन तु। साधवो दुःखिता 'ज्ञेया प्रोष्ठपदमपग्रहः ॥35॥ यदि आश्लेषा नक्षत्र में प्रथम जल-वृष्टि हो तो 64 आढक प्रमाण जल की वर्षा होती है । फसल में अनेक प्रकार के रोग लगते हैं, नाना प्रकार के रोगों से जनता में आतंक व्याप्त रहता है, साधुओं को अनेक प्रकार के कष्ट होते हैं तथा भाद्रपद मास में अपग्रह - अनिष्ट होता है ।।34-35॥ मघासु खारी विज्ञेया सस्यानाञ्च समुद्भवः । कुक्षिव्याधिश्च बलवाननीतिश्च तु जायते ॥36॥ यदि मघा नक्षत्र में प्रथम जल की वर्षा हो तो खारी प्रमाण-16 द्रोण जलवृष्टि उस वर्ष होती है और अनाज की उत्पत्ति खूब होती है। पेट के नाना प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं और अन्याय-नीति का प्रचार होता है ।। 36।। फाल्गुनीषु च पूर्वासु यदा देव: प्रवर्षति । खारी तदाऽऽदिशेत पूर्णा तदा स्त्रीणां सुखानि च ॥37॥ सस्यानि फलवन्ति स्युर्वाणिज्यानि दिन्ति च । अपग्रहश्चतुस्त्रिशच्छावणे सप्तरात्रिकः ॥38॥ यदि पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में प्रथम वर्षा हो तो उस वर्ष खारी प्रमाण-16 द्रोण जल की वर्षा होती है । स्त्रियों को अनेक प्रकार का सुख प्राप्त होता है। कृषि और वाणिज्य दोनों ही सफल होते हैं । 24 दिनों के पश्चात् अर्थात् श्रावण मास में 7 दिन व्यतीत होने पर अपग्रह-अनिष्ट होता है ।।37-38।। उत्तरायां तु फाल्गुन्यां षष्टिसप्त च निर्दिशेत् । आढकानि सुभिक्षं च क्षेममारोग्यमेव च ॥39॥ बहजा दीना शीलाश्च धर्मशीलाश्च साधवः। अपग्रहं विजानीयात् कातिके द्वादशाहिकम् ॥40॥ उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में प्रथम वर्षा हो तो उस वर्ष 67 आढक प्रमाण जल की वर्षा होती है तथा सुभिक्ष, क्षेम और आरोग्य की प्राप्ति होती है। सभी मनुष्यों में दानशीलता और साधुओं के धर्मशीलता की वृद्धि होती है । कात्तिक मास में 12 दिन व्यतीत होने पर अपग्रह-अनिष्ट होता है ।।39-40॥ पश्चाशीति विजानीयात् हस्ते प्रवर्षणं यदा। तदा निम्नानि वाप्यानि पंचवणं च जायते ॥41॥ 1. विन्द्यात् मु.। 2. च तत्सुखम् मु०। 3. दानशीलाश्च मनुजा मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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