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________________ नवमोऽध्यायः 115 के लिए प्रयाण करनेवाले राजा की सेना सदा पराजित होती है ।। 58।। तिथीनां करणानां च मुहूर्तानां च ज्योतिषाम्।। मारुतो बलवान् नेता तस्माद् यत्रैव मारुतः॥59॥ तिथियों, करणों, मुहूर्तों और ग्रह-नक्षत्रादिकों का बलवान् नेता वायु है, अतः जहाँ वायु है, वहीं उनका बल समझना चाहिए ।। 59।। वायमानेऽनिले पूर्वे मेघांस्तत्र समादिशेत् । उत्तरे वायमाने तु जलं तत्र समादिशेत् ॥60॥ यदि पूर्व दिशा में पवन चले तो उस दिशा में मेघों का होना कहना चाहिए और यदि उत्तर दिशा में पवन चले तो उस दिशा में जल का होना कहना चाहिए ।।601 ईशाने वर्षणं ज्ञ यमाग्नेये नैऋतेऽपि च । याम्ये च विग्रहं ब्र याद् भद्रबाहुवचो यथा ॥61॥ यदि ईशान कोण में पवन चले तो वर्षा का होना जानना चाहिए और यदि नैऋत्य तथा पूर्व-दक्षिण दिशा में पवन चले तो युद्ध का होना कहना चाहिए ऐसाभद्रबाहुस्वामी का वचन है ।।6 1॥ सुगन्धेषु प्रशान्तेषु स्निग्धेषु मार्दवेषु च । वायमानेषु' वातेषु सुभिक्षं क्षेममेव च ॥62॥ यदि चलने वाले पवन सुगन्धित, प्रशान्त, स्निग्ध एवं कोमल हों तो सुभिक्ष और क्षेम का होना ही कहना चाहिए ।।62।। महतोऽपि समुद्भूतान् सतडित् साभिजितान् । मेघान्निहनते वायुर्नैऋतो दक्षिणाग्निजः ॥63॥ नैऋत्यकोण, अग्निकोण तथा दक्षिण दिशा का पवन उन बड़े मेघों को भी नष्ट कर देता है-बरसने नहीं देता, जो चमकती बिजली और भारी गर्जना से युक्त हों और ऐसे दिखाई पड़ते हों कि अभी बरसेंगे ॥63॥ सर्वलक्षणसम्पन्ना मेघा मुख्या जलवहाः । मुहूर्तादुत्थितो वायुहन्यात् सर्वोऽपि नैऋतः॥64॥ सभी शुभ लक्षणों के सम्पन्न जल को धारण करने वाले जो मुख्य मेघ हैं, उन्हें भी नैऋत्य दिशा का उठा हुआ पूर्व पवन एक मुहूर्त में नष्ट कर देता है ।।64।। 1. मुद्रित प्रति में श्लोकों की संख्या में व्यतिक्रम होने से पूर्वार्ध श्लोक नहीं है ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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