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________________ 112 भद्रबाहुसंहिता महान् भय का सूचक जानना चाहिए अथवा इस प्रकार का वायु अतिवृष्टि का सूचक होता है ।।41॥ पूर्वसन्ध्यां यदा 'वायुरपसव्यं प्रवर्तते। पुरावरोधं कुरुते यायिनां तु जयावहः ॥42॥ ___ यदि वायु अपसव्य मार्ग से पूर्व सन्ध्या को वातान्वित करता है तो वह पुर के अवरोध का घेरे में पड़ जाने का सूचक है। इस समय यायियों-आक्रमणकारियों की विजय होती है ।।420 पूर्वसन्ध्यां यदा वायुः सम्प्रवाति प्रदक्षिणः । नागराणां जयं कुर्याद् सुभिक्षं यायिविद्रवम् ॥43॥ यदि वह वायु प्रदक्षिणा करता हुआ पूर्वसन्ध्या को व्याप्त करे तो उससे नागरिकों की विजय होती है, सुभिक्ष होता है और चढ़कर आनेवाले आक्रमणकारियों को लेने के देने पड़ जाते हैं अर्थात् उन्हें भागना पड़ता है ।।43।। मध्याह्न वार्धरात्रे वा तथा वाऽस्तमनोदये। वायुस्तूर्ण यदा वाति तदाऽवृष्टिभयं रुजाम् ॥440 यदि वायु मध्याह्न में, अर्धरात्रि में तथा सूर्य के अस्त और उदय के समय शीघ्र गति से चले तो अनावृष्टि, भय और रोग उत्पन्न होते हैं ॥44॥ यदा राज्ञः प्रयातस्य प्रतिलोमोऽनिलो भवेत। अपसव्यो समार्गस्थस्तदा सेनावध' विदुः॥45॥ यदि राजा के प्रयाण के समय वायू प्रतिलोम --विपरीत बहे अर्थात् उस दिशा को न चलकर जिधर प्रयाण किया जा रहा है, उससे विपरीत जिधर से प्रयाण हो रहा है, चले तो उससे आक्रमणकारी की सेना का वध समझना चाहिए।।45॥ अनुलोमो यदा स्निग्धः सम्प्रवाति प्रदक्षिणः। नागराणां जयं कुर्यात् सुभिक्षं च प्रदीपयेत् ॥46॥ ____ 1. रपरसन्ध्या द्रवात् पुरः मु. A., परसन्ध्याद्रवात् परम् मु० B. परसन्ध्या प्रवास्यते मु. D. 1 2. भयं मु० D.। 3. विद्रवाम मु० A. 4. च मु० 5. रुजा मु० । 6. समार्गस्य मु० । विमार्गस्थो मु०.। 7. भयं मु० A. | 8. प्रदीपतश्च चार्थशब्दश्च तदा क्षिप्रं जयावहः मु० C.।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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