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________________ 96 भद्रबाहुसंहिता __सुगन्ध-केशर और कस्तूरी के समान गन्ध वाले, मनोहर गर्जन करने वाले, स्वादु रस वाले, मीठे जल वाले मेघ समुचित जल की वर्षा करते हैं ।।9।। मेघा' यदाऽभिवर्षन्ति प्रयाणे पृथिवीपतेः । मधुरा. मधुरेणैव तदा सन्धिर्भविष्यति ॥10॥ राजा के आक्रमण के समय मनोहर और मधुर शब्द वाले मेघ वर्षा करें तो युद्ध न होकर परस्पर सन्धि हो जाती है ।।10। पृष्ठतो वर्षत: श्रेष्ठंः अग्रतो विजयंकरम्।। मेघाः कुर्वन्ति ये दूरे सज्जित-सविद्युतः ॥11॥ राजा के प्रयाण के समय यदि मेघ दूरी पर गर्जना और बिजली सहित वृष्टि करें और पृष्ठ भाग पर हों तो श्रेष्ठ जानना चाहिए और अग्र भाग पर हों तो विजयप्रद समझना चाहिए ।11।। मेघशब्देन महता यदा निर्याति पार्थिवः । पृष्ठतो गर्जमानेन तदा जयति दुर्जयम् ॥12॥ यदि राजा के प्रयाण के समय पीछे के मार्ग से मेघ बड़ी गर्जना करें तो दुर्जय शत्रु पर भी विजय संभव हो होती है ॥12॥ मेघशब्देन महता यदा तिर्यग् प्रधावति । न तत्र जायते सिद्धिरुभयो: परिसैन्ययोः ॥13॥ यदि आक्रमण काल में मेघ सम्मुख या पृष्ठ भाग में गर्जना न कर तिर्यक बायें या दायें भाग गर्जना करें तो यायी और स्थायी इन दोनों ही सेनाओं को सिद्धि नहीं होती अर्थात् दोनों ही मेनाएं परस्पर में भिड़न्त करती हुई असफल रहती हैं ॥13॥ मेघा यत्राभिवर्षन्ति स्कन्धावार समन्ततः। सनायका विद्रवते सा "चमर्नात्र संशयः ॥14॥ मेघ जिस स्थान पर मूसलाधार पानी वर्षावें वहां पर नायक और सेना दोनों ही रक्तरंजित होते हैं, इसमें कुछ भी सन्देह नहीं हैं ।।14।। 1. सद्यो मु० A.। 2. मधु रान् । 3. सुस्वरानेव। 4. श्रेष्ठि म० A. मेघ मु० C. । 5. गजमान मु० A. नद्दमा। 6. युद्धमुभयो: मु० । 7. परिसैन्य यो: मु० । 8. धासारे मु० A. 1 9. का पि मु० C.। 10. दृष्टव्यम् मु० C. । 11. चमू मु० C.
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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